सिरहाने रखें सिगरेट के बॉक्स से जब सिगरेट निकाली, तो पता चला कि ये अंतिम सिगरेट थी!
पिछले तीन दिन से लॉकडाउन के कारण घर की चौखट से बाहर कदम नहीं रख पाया हूँ और अब यह लॉकडाउन इक्कीस दिन के लिए और बढ़ा दिया गया है।
अब क्या होगा! अंतिम सिगरेट, यह तो वैसा ही हुआ ना जैसे किसी भूखे से उसका निवाला छीन लेना, शरीर से उसकी आत्मा को अलग कर देना, प्रेमी से उसकी मासूका को अलग कर देना।
बहरहाल मैंने अपनी सिगरेट को जलाया और एक लंबा कश मारते हुए, एक गहरी सोच में डूब गया....................
इन दिनों में अपने जीवन के सबसे निराशा वाले दिनों से गुजर रहा हूं। खुद को घर में अपने परिवार वालों के साथ भी अकेला महसूस कर रहा हूं......मैं और मेरा अकेलापन इन दिनों खूब एक-दूसरे से बतियाते है।
थोड़े दिनों पीछे चलते है.........जीवन के सबसे भयानक दौर में!
आज यूनिवर्सिटी के एग्जाम देकर जैसे ही डिपार्टमेंट से निकला। मैं अपनी दुनिया में मस्त, एक गहरी सोच में चल रहा था।
अचानक वो दिखी!.........मैं उस गहरी सोच से यकायक कोसों दूर आ गया।
उसके खिलते सुंदर चेहरे को देख मेरा अंतस्थ आनंदित हो उठा, लेकिन मैंने मन ही मन ठान लिया, बस अब बहुत हो गया।
जिसके कारण आज मेरी यह हालत हुई है!.......दुनिया से कटा हुआ, एक गहरी निराशा को लिए हुए, अकेलापन, सुबह से शाम तक गांजे के नशे में धुत, सिगरेट के धुएं में डूबा हुआ!
भले ही वो अब मेरे सामने है, लेकिन मैंने दृढ़ संकल्प ले लिया था.......अब इसको मैं नजरअंदाज करूँगा!
वो आहिस्ता-आहिस्ता मेरे पास आ रही थी लेकिन, न चाहते हुए भी मेरी नज़रे उसके खिलते हुए हँसमुख चेहरे को देखने के लिए लालायित हो रही थी।
जैसे ही वो मेरे पास आई तो उसने मुझे हाय (Hy) किया। बदले में मैंने भी झूठी मुस्कान के साथ हवा में हाथ हिला दिया, लेकिन आज अचानक से उसने मेरा हवा में लहराता हुआ हाथ अपने हाथ में थाम लिया। मेरे हाथ में अपने हाथ को थामे, वो मुझे जबर्दस्ती डिपार्टमेंट से थोड़ी दूर ले गई!
ये सब क्या एक सपना था या फिर मृग- तृष्णा........
मैंने मन ही मन सोचा, लेकिन यह हकीकत में हो रहा था!
उसने अब भी मेरा हाथ अपने पंखुड़ियों के समान कोमल हाथ में थामा हुआ था। इस बीच मैं उसके मुखाकृति को घोर से देख रहा था.....उसके हिरणी समान तिरछे नयन और उसके गुलाब से नाजुक अधर। वो कुछ बोल रही थी और हँस रही थी, लेकिन मैं उसके चाँद से चेहरे को देखने मे मशगूल था।
मैं मन ही मन खुद से सवाल कर रहा थी कि आख़िर पिछले तीन महीने से जिसके लिए मैंने अपनी यह जानवर जैसी हालत बना रखी है, जिसको खुश करने के लिए मैंने अपनी खुशियों को तबाह कर दिया .....लेकिन वो मुझे नजरअंदाज करती रही!
इन तीन महीनों में एक बार प्रत्यक्ष और चार से पांच बार अप्रत्यक्ष रूप से उसको बता दिया था कि हम तुमको कितना प्यार और पसंद करते है, लेकिन उसके लिए मेरा होना या न होना.....उसको कोई फ़र्क नहीं पड़ता था।
वो और ये भोपाल शहर कब मेरा था, वहाँ तो बस मैं बंजारों की तरह गुजर रहा था! भले ही उसके पास प्यार का समुंदर था, लेकिन मैं तो उसके कूचे से प्यासा गुजर रहा था! इस शहर भोपाल की महफ़िलें, नगमे और शामे रंगीन उसको मुबारक, मुझे तो बस मेरी जुगनू रूपी सिगरेट की रौशनी का सहारा था! ये गुल गुलिस्तां हो उसको मुबारक, मुझे तो बस मेरे छोटे से रूम का सहारा था....जिसमें सिगरेट के धुँए की महक थी!
उसने अचानक से आवाज में जोर देकर कहा कि " सर मुझे आपसे बात करनी है।"
इतनी देर से मैं उसकी बातों में सिर्फ अपनी गर्दन हिला रहा था। मुझे कुछ ध्यान न था कि वो क्या बात कर रही थी, लेकिन सहसा तेज हुई आवाज से मेरा ध्यान उसकी और चला गया।
वो फिर बोली " सर मुझे आपसे बात करनी है।"
मैं निर्लिप्त भाव से बोला " कीजिये क्या बात करनी है?"
वो हँसती हुई बोली " यहाँ नहीं सर नीचे चलिए।"
हम दोनों सीढ़ियों से नीचे उतरने लगे। हर दूसरी सीढ़ी पार करते ही सहसा मेरी नजर उसके चेहरे की और चली जाती। मैंने अपनी नज़रें जमीन की तरफ फेर दी और एक गहरे सवाल में डूब गया।
इतने दिन जब मैं खुद से ज्यादा उसको याद करता था, तब तक इसने मुझे नजरअंदाज किया, लेकिन पिछले तीन दिन से जब मैंने ही मैसेज करना बंद किया, आज उसको मेरी जरूरत का एहसास हो गया!
आज मेरी परीक्षाएं पूरी हो गई है। परसों मैं दक्षिण भारत की लंबी यात्रा पर जा रहा हूं। अचानक से वो सीढियों पर किसी को देखकर रुक गई। उसने सबको हाय (Hy) किया....ये सब उसके क्लासमेट थे। उनके साथ थोड़ी देर के लिए मैं भी खड़ा रहा फिर मैंने वहाँ अपनी मौजूदगी को सार्थक नहीं समझा।
"मैं जा रहा हूं, बात कभी और कर देंगे" मैंने कहा।
उसने जवाब दिया "सर मुझे तो बात करनी थी और आप जा रहे है, फिर कब बात होगी?"
मैंने जाते हुए कहा कि कल कर लेंगे..…..
यूनिवर्सिटी के मुख्य दरवाज़े से बाहर निकलते हुए खुद से से कह रहा था कि कल भी नहीं मिलूँगा........मैं तो एक लंबी यात्रा पर जाऊँगा और फिर कभी वापिस नहीं लौटूँगा..... इस शहर भोपाल में!
शायद वो और उसकी बात अब कभी मुकम्मल नहीं हो पायेगी!
ये सब मैंने कोरोना की माहमारी से एक महीने पहले लिखा था, लेकिन मुझे क्या पता था कि वाकई मेरा पुनः उससे मिलना और उस शहर जाना एक ख़्वाब बन जायेगा..... एक महिने से दक्षिण भारत में घूम रहा हूं....... घर वालों से भी मिलना....अब एक सपना सा लग रहा है!
कोरनो खत्म होने के बाद आप सभी के जीवन में तो फिर से खुशियों का अंबार आ जायेगा, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मेरे इस जीवन में अब खुशियां वापिस आयेगी!
लेकिन मुझे अब भी उम्मीद है कि वो वापिस आयेगी, मेरे सच्चे पाक प्यार की कीमत को समझेगी, मुझे सहर्ष अपने आलीगंन में लेगी........तुम्हारा हितेश!!!
✍️©हितेश राजपुरोहित "मुडी"
Nice hukm aapki lekhani me itni sarda-bhav h to real life me bhi jrur aapko manzil milegi
ReplyDeleteNice bro.
ReplyDeleteअति सुंदर साहेब🖋️🖋️🙏❤️
ReplyDeleteठहरो क्या कहा आपने सच्चा और पाक प्यार🙄 ये बस kapi प्रेम है गुरु
ReplyDeleteबहुत बढिया।अब आपकी लेखनी में दिनोंदिन सुन्दरता और सरलता को महसूस कर रहा हू।इसे निरंतर बनाएं रखिए।
ReplyDeleteजालोर को आप पर एक जरूर गर्व होगा।हमें तो अभी से हो रहा है।