रेलवे स्टेशन
(एक अनकही दास्ता...)
"तुम कभ सुधरोगें" फोन के उस पार से उकड़ूँ बैठे मनोज के कानों में वो आवाज हर बार की तरह ही सामान्य लग रही थी।
"जब जमाना सुधर जायेगा सिर्फ हमने ही सुधरने का ठेका थोड़े न ले रखा है" मनोज ने अपने कान में बाइक की चाबी से खुजाते हुए कहा।
दो मिनट की खामोशी के बाद फोन के उस पर से रुदन गले से रश्मि बोली " ऐसे ही रहा तो एक दिन में बहुत दूर चली जाऊंगी"।
"Ok bye अपना ख़्याल रखना" मनोज ने कहते हुए फोन काट दिया।
मनोज के लिए तो यह हररोज़ का सिलसिला था, हर दिन किसी न किसी बात पर कहासुनी पिछले एक साल से अनवरत जारी थी।
लेकिन रश्मि मनोज को लेकर बहुत ज्यादा ही चिंतित थी।
इन दोनों का ये रिश्ता दसवीं कक्षा की एक्स्ट्रा क्लास से ही शुरू हुआ था जो अभी BA फाइनल ईयर तक जारी है।
मनोज फोन रखने के बाद अचानक न चाहते हुए भी पता नही आज क्यों रोने लगा?
मनोज ने अपनी जेब से गोल्डफ्लेक की सिगरेट निकाली और जलाते हुए एक गहरी सोच में पड़ गया।
कस लगाते हुए धुँए में वो अपनी पहली नई-नई मुलाकातों का ख़ुशनुमा आशियाना बना रहा था।
सिगरेट कब पूरी हुई पता ही नही चला, वो ख़ामोशी से उस धुँए में समा गया था।
अचानक से फोन की रिंग बजी, फोन घर से था मनोज बाइक स्टार्ट करके सीधे घर गया और बिना खाना खाये अपने रूम में चला गया। घंटो तक वो एक गहरी सोच में मशगूल हो गया।
अचानक से उसने घड़ी देखी चार बजे चुके थे, हररोज़ चार बजे रश्मि का मैसेज आना दिनचर्या का हिस्सा हो गया था। लेकिन उस दिन चार बजकर पंद्रह मिनट हो चुकी थी, लेकिन मैसेज नही आया।
मनोज ने सोचा कि गुस्सा होगी, मैं ही कर देता हूं लेकिन फिर उसने अपना मूड चेंज कर दिया और मैसेज नही किया।
घड़ी में पाँच बजे चुके थे और पाँच बजे V S महावीर स्कूल के खेल मैदान में क्रिकेट खेलने जाना मनोज के दिनचर्या का सबसे खुशनुमा और प्रमुख हिस्सा था।
कितना ही अर्जेंट काम हो फिर भी हर काम को टालकर वहाँ चला ही जाता था।
मनोज क्रिकेट का एक अच्छा खिलाड़ी था और हर मैच में दो बार बैटिंग करना उसका अपना ही टैलेंट था।
आज ग्राउंड में जाते वक्त उसने अपने जेब मे गोल्डफ्लेक का पूरा पैकेट डाल दिया और ग्राउंड में जाकर उसने आज क्रिकेट नही खेला, पेड़ के नीचे बैठकर अपनी दुनिया मे डूबा रहा, पता ही नही चला कि कब सिगरेट का पूरा पैकेट खाली हो गया और सारे बच्चे घर चले गये।
मनोज भी घर की ओर रवाना हो गया और जाते ही सो गया।
अगली सुबह वह अपने परिवार सहित अपने गाँव चला गया कुछ दिनों के लिए, गाँव मे बिताए एक हफ्ते में उसने एक बार भी रश्मि को फोन नही किया और ना ही रश्मि ने मनोज को फोन किया।
कुछ दिनों के बाद शाम को वो अपने शहर जालोर लौट गया।आज वो बहुत खुश था सोच रहा था कि कल सुबह रश्मि को मिलकर बोल दूंगा की आज के बाद जैसा तुम कहोगी वैसा ही मैं करूँगा।
रात के आठ बजे चुके थे अचानक से मनोज के घर के बाहर से किसी के जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज आई।
मनोज भागकर बाहर गया तो देखा कि महिपाल खड़ा था।
मनोज ने महिपाल से पूछा "क्यों रे इतना काहे को चिल्ला रहा है।"
महिपाल ने हाँफते हुए कहा "रश्मि और उसका पूरा परिवार सामान सहित रेलवे स्टेशन पर खड़ा है उसके पाप ने अपना ट्रांसफर चार दिन पहले खुद के शहर झारखंड करवा दिया है वो जालोर छोड़कर जा रहे है"।
मनोज के पैरों तले जमीन खिसक गई!
"ट्रैन का समय साढ़े आठ बजे है ट्रैन आने में 10 मिनट बाकी है" महिपाल ने कहा।
मनोज बिना जूतों के नंगे पांव शहर की सड़कों पर बेतरतीब भागने लगा रेलवे स्टेशन की तरफ, वो रश्मि से मिलना चाहता था उसको बोलना चाहता था कि आज से मैं बदल गया हूं.....उसको अपनी गलती का एहसास हो रहा था।
जैसे ही मनोज रेलवे स्टेशन पहुँचा उसे सिर्फ चलती ट्रेन में रश्मि का अलविदा रूपी लहराता हुआ हाथ नजर आया।
अब मनोज के पास यादो के रूप में सिर्फ उस ट्रैन का जाना और रश्मि का लहराता हुआ हाथ था।
इस घटना को सात साल बीत गए है, परंतु मनोज हररोज़ रात को रेलवे स्टेशन जाता है सिर्फ उस लहराते हुए हाथ को देखने...........और उस जाती हुई रश्मि को रोकने!
वो हररोज़ स्वयं को कोसता है कि कास उस रात को वो पाँच मिनट जल्दी आया होता तो।
इस तरह की घटनाएं जिंदगी में कुछ ऐसा दे जाती है कि जिसके सहारे रोज मरते-मरते भी जीना पड़ता है जैसे मनोज पिछले सात साल से मरमर कर जी रहा है।
✍️©हितेश राजपुरोहित "मुडी"
❤❤❤
ReplyDelete😊😊
Deleteवो मनोज कौन है मैं जानता हूं।बहुत सुन्दर
ReplyDeleteJordar sahab�� kaviraj hitsa ������
ReplyDeleteShukriyaa bhai
Deleteबहुत अच्छा लिखत हो यार...
ReplyDeleteGod bless you..
Shukriya
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