Followers

Friday, December 6, 2019

चाय पर चर्चा!

                             चाय पर चर्चा !
गर्म चाय के गिलास में से निकलती भाप और सिगरेट का धुँआ सर्दी के वजूद को आहिस्ता-आहिस्ता नजरदांज कर रहा था, हल्की सुनहरी धूप मेरे चेहरे को दीप्तिमान ज्वाला सी चमका रही थी। 
लंबे-लंबे सिगरेट के कस, धुँए से बनते छल्ले और समोसे की महक .........मौसम अपने रंगीन अंदाज में था!

आज पत्रकारिता कॉलेज के छात्रों का जमावड़ा "राष्ट्र" के मुद्दे पर गर्मागर्म बहस कर रहा था।
चाय की थड़ी पर, एक बैंच पर धुर राष्ट्रवादी सोच के नवांकुर दक्षिणपंथी विचारक बैठे थे और उनके ही सामने लगी दूसरी बैंच पर मार्क्स के मानसपुत्रों की फ़ौज बैठी थी।

तर्क-वितर्क की कसौटी पर दोनों खेमों से इजरायली मिसाइलें दागी जा रही थी। सभी अपने-अपने विचारधारा के कट्टरपंथी है, इसीलिए किसी भी तर्क पर आमसहमति बन ही नहीं पा रही थी।
लेकिन हर दो मिनट के बाद एक दक्षिणपंथी विचारक सामने बैठे वामी को सिगरेट सहर्ष शेयर कर रहा था !
विचारधारा भलेही कोई भी हो, लेकिन शराब और सिगरेट से किसका कोई बैर ........यही तो ईंधन है, लंबी चर्चाओं का!
इसी शराब में डूबकर ही तो अंधेरी रातों में अपने-अपने विचारधाराओं का गूढ़ अध्यन किया जाता है।

इसी बीच एक वामी विचारक ने कहा "राष्ट्रवाद का ठेका तुमने ही उठा रखा है, हम का अछूत है!........हम भी इसको अपना राष्ट्र मानते है फिर भी हमे हर बात पर राष्ट्रविरोधियों में शामिल क्यों?".......जवाब चाहिए!

इधर दक्षिणपंथी खेमे से तिलमिलाहट भरी आवाज आई!
" तुम्हारा राष्ट्रवाद राजनैतिक राष्ट्रवाद है जो भारत की इस भूमि को सिर्फ भोग और विलास की भूमि मानते है, जबकि हमारा राष्ट्रवाद सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है जो इस भारत की भूमि को कर्मभूमि और जन्मभूमि से बढ़कर जगतजननी का स्वरूप मानते है।

चर्चा अपने चरम पर थी, दोनों और से ब्रहास्त्र दागे जा रहे थे!
इतने में मैंने सिगरेट का एक लम्बा कस मार के सिगरेट को जमीन पर फेका और अपने पैर से कुचल दिया।
मेरी नजरे सामने वाले खेमे के एक बंदे से जा टकराई .......उसके चेहरे के हावभाव से लग रहा था कि ये भी मेरी तरह सितम का सताया हुआ, ज़बरदस्ती बैठा है......विचारधारा से कोई लेना नहीं, साला खुद के विचारों से भी सहमत नहीं......काहे की वामी और दक्षिण सोच!

मुझे देखकर मुस्कुराते हुए उसने बोलना शुरू किया गर्मागर्म बहस के बीच......." बक्क साला! कभी की बकैती कर रहे हो पिछले एक घण्टे से.......इधर साला हमारा आराध्य और ईष्ट का कॉन्सेप्ट क्लियर नहीं हो रहा है।

किसी ने पूछा क्या हुआ बे, हमे बोलो हम कर देते है सब क्लियर!

वो दर्द भरे लहजे में बोला आराध्य और ईष्ट में क्या अंतर है?
दोनों विचारधाराओं के समर्थकों को साँप सूंघ लिया!.......मुख़बधिर, शांत!
वातावरण की गर्मी और तेज हो गई, अब दिमाग रूपी मशीन को सिगरेट रूपी ईंधन की आवश्यकता महसूस हो रही थी। वातावरण में कल-कारखानों के समान सिगरेट का धुँआ फैल रहा था।

जिनते में मैंने अपनी कमान संभाली और बोल " हे पार्थ! तुम्हारा सारथी कृष्ण अभी जिंदा है....हम तुम्हारी समस्या का निदान करेंगे"
तो सुनो मार्क्स के मानसपुत्रों और दक्षिण के दंगल के पहलवानों........... यथार्थ!

आराध्य जिसकी हम आराधना करते है और आराधना कठोर तप और परिश्रम से ही संभव है।
और जिनकी हम आराधना करते है वो अपना आराध्य हो जाता है।

इतना बोलते के बाद, मैंने सबके चेहरों पर एक पैनी नजर दौड़ाई ....…बक्क साला बाउंस हो गया, इनके तो ऊपर से गया!
हमने मोर्चे को पुनः संभालने का जिम्मा लिया......बोला इसको तुम अपने एक उदहारण से समझो।
जैसे किसी रोज तुम्हारे जेब में एक पैसा नहीं होता है और तुमको सिगरेट की तलब उठती है। तब तुम एक आराध्य के खोज में निकल पड़ते हो यानी किसी ऐसे लौंडे को खोजते हो, जो तुम को मुफ्त की सिगरेट पिला सके!

ऐसा लौंडा बड़े मुश्किल से मिलता है।
जिसको अपनी कठोर तपस्या, साधना और परिश्रम से प्रसन्न करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप वो प्रसन्न होकर तुम्हें सिगरेट रूपी वरदान देता है।
"सही जा रहा है लौंडा........ साला ज्ञानी निकला ये तो!"

दोनों खेमों से वाहवाही लूट लेने के बाद अब मेरे अंदर का दार्शनिक मद में मोहित होकर दानव का रूप धारण कर रहा था।
"भाई तो फिर इष्ट क्या है?" दोनों खेमों से आवाज उठी!
ठहरो जल्दी का काम शैतान का.......पहले दार्शनिक को ईंधन रूपी सिगरेट की आवश्यकता है, इतना बोलते ही मार्लबोरो एडवांस की सिगरेट मेरे अधरों से आ टकराई!
सिगरेट ने जलना शुरू किया.....साथ ही दिमाग रूप मशीन ने भी......फिर वही धुँआ और वही छल्ले!

फोगट की सिगरेट पर इतना मज़ा न लो राजस्थानी....मुद्दे पर आओ.....दोनों खेमों से जोरदार आवाज उठी।

हमने बोला " आराध्य तो स्पष्ट हो गया, अब इष्ट का सुनो"

इष्ट यानी धीरे-धीरे जब हम कठिन तप, साधना और परिश्रम के जरिये आराधना करके आराध्य को प्राप्त करते है, तो वह इष्ट बन जाता है।
यानी जब हम उस लड़के को रोज-रोज सिगरेट पिलाने की मांग करते है तो वह धीरे-धीरे अपना खास हो जाता है....और जब कभी जेब खाली होतो, जरा सी तपस्या और साधना से उसके पास से सिगरेट रुपी वरदान प्राप्त कर सकते है!
आराध्य की प्राप्ति तप से संभव है, जबकि इष्ट की प्राप्ति सत्संग से संभव है......सत नहीं होगा तो भी चलेगा....बस संग होना चाहिए।
इष्ट और आराध्य में उतना ही अंतर है जितना छोटी गोल्डफ्लेक और  क्लासिक माइल्ड में है!
कॉन्सेप्ट क्लियर....... और नहीं हुआ हो............ तो लाइये एक विल्स नेविकट और चाय!

हम तो साहब जालोर से है......ज्ञान तो भरा पड़ा है!!!

✍️©हितेश राजपुरोहित "मुडी"






2 comments:

  1. अब तक का सर्वश्रेष्ठ

    ReplyDelete
  2. साला..... आप भी कमाल करते है......हर बार सबसे बेहतरीन की उपाधि देते हो😀😍

    ReplyDelete

जोधाणा की जुबानी।

13 मई 2023 शहर जोधाणा (जोधपुर), जेठ की तपती शाम में गर्मी से निजात पाने के लिए जैसे ही छत पर चढ़ा। यक़ीनन मैं काफी हल्का महसूस कर रहा था। इसक...