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Thursday, December 12, 2019

मैं और मेरी तन्हाई


                       
दिसंबर का महीना, कॉलेज का परिसर और उस परिसर में खड़े विशाल दरख़्त (पेड़) आज मायूस से प्रतीत हो रहे है।
पत्तियों से आच्छादित होने के बावजूद, किसी ठूँठ से नजर आ रहे है, कोई हरकत नहीं, एकदम निश्चल !........सबकुछ

खामोश, एकदम नीरव.............पूरा कॉलेज परिसर!

मैं और मेरी तन्हाई एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर कॉलेज के गार्डन में चल दिए........ सर्दी के कारण गार्डन की घास में कुछ नमी है। मेरी तन्हाई, मुझे आलिंगन करने को बेताब है, लेकिन मैं आज किसी ख़्याल में उलझकर रह गया हूँ। आख़िर ये ख़्याल आया कहाँ से ?


इसी सोच में डूब गया, तन्हाई ने न जाने किस पल मुझे आलिगंन में आत्मसात कर लिया......फिर भी मैं अपनी सोच में मशगूल हूँ। आसमान आज बादलों से भरा पड़ा है........धूप शायद आशियाने में लौट चुकी है, ठण्डी-ठण्डी बर्फ़ली-सी हवाएं मेरे ललाट और अधरों को आकर स्पर्श कर रही है। मैंने अपनी आँखों को बंद कर दिया है, लेकिन ये ठण्डी हवाएं मेरे हाथों के रोंगटे खड़े कर रही है। मैं अपनी आँखों को बंद कर विचारशून्य और भावशून्य महसूस कर रहा हूँ...... बादलों की गर्जना मनमोहक लग रही है, मेरा कही जाना शेष नहीं है और मेरी कोई गति नहीं है।

खामोश पड़े दरख़्तों में तेज हलचल शुरू हुई, सहसा तेज बारिश ..........हवाओं के साथ तेज बूंदाबांदी का दौर शुरू हो गया!............काले घनघोर बादलों ने आसमान घेर लिया, ठण्डी हवाएं अपना प्रचंड रूप ले चुकी है .......अब मैं इन हवाओं को सहन नहीं कर पा रहा हूँ, मैं सर्दी के कारण कांप रहा हूं!
परिसर पानी से थोड़ा भर गया है.....यायावरी बादलों को उसमे देखना बेहद खूबसूरत लग रहा है......आज मैं वाकई प्रकृति के साथ अपने जीवन को जी रहा हूं, कितनी खूबसूरती से भरी पड़ी है ये प्रकृति!

प्रकृति की ये खामोशी कितना मनमोहक संगीत सुना रही है......अद्भुत!!........ये मिट्टी की सौंधी खुशबू , मेरे किरदार को महकाने के लिए किसी संजीवनी बूटी सी लग रही है!!

बारिश थम चुकी है......आसमान सफेद रुई समान बादलों से भिन्न-भिन्न मुखाकृति बना रहा है.....आह!!
ये बादलों में बना चेहरा, मेरे प्रियसी के मुखमंडल से कितना मेल खाता है......दोनों की सुंदरता लफ्जों में बयां नहीं हो सकती!.........बस चेहरे पर एक अनायास खुशी छा जाती है!!

✍️©हितेश राजपुरोहित "मुडी"

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