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Saturday, May 13, 2023

जोधाणा की जुबानी।

13 मई 2023 शहर जोधाणा (जोधपुर), जेठ की तपती शाम में गर्मी से निजात पाने के लिए जैसे ही छत पर चढ़ा। यक़ीनन मैं काफी हल्का महसूस कर रहा था। इसका कारण दिनभर की गर्मी ने दिमाग और शरीर दोनों को डिप्रेशन में ला दिया था और रही कसर पढ़ाई की चिंता ने पूरी कर दी थी।

छत पर आने से पहले मेरे मन में हजारों सवाल थे, मायूसी ने मुझे घेर रखा था। मानो मैं खुद से एक युद्ध लड़ रहा हूँ और वो भी निहत्थे आख़री सिपाही के रूप में, जो मानो किसी हार के डर से समर्पण की मुद्रा में लीन होने की कोशिश कर रहा हो।

लेकिन जैसे ही मैंने अपनी कोठरी से छत की और प्रस्थान किया। मुझे अपनी कोठरी की दीवारों और किवाड़ों से एक अजीब गंध आ रही थी और यह गंध किसी प्राचीन खंडहर के जैसे लग रही थी। अपने सांस को रोककर मैं छत की तरफ भागा......!!

ऊपर पहुचने से पहले अंतिम सीढ़ी पर मेरे मस्तक को एक तेंज लू के झोंके ने चुम लिया। मुझे फिर भी अपनी कोठरी से यहाँ बेहतर अनुभव हो रहा था। छत से सुदर नज़र आता शहर जोधाणा, इस भयंकर गर्मी में भी यहाँ के बाशिंदे गर्म चाय और ए भाया! एक गर्म मिर्चीबड़ो देदो।" के टोन (धुन) में तल्लीन हैं।


मेरे कोठरी की छत से मेहरानगढ़ (जोधपुर किला) एकदम समीप और स्पष्ट दिखाई पड़ता है। इसका कारण मैं पुराने शहर में रहता हूँ। यहाँ अपना एकदम देसी मारवाड़ नज़र आता है।.....क्या करते हो? का ज़वाब "फ्री हा"  में देने वाले टेंशन फ्री लोगों के बीच गुजरता है समय।

जैसे ही मैंने मेहरानगढ़ को देखा, वो अपने प्राचीन गौरवशाली इतिहास को लिए वैसे ही खड़ा है जैसे राव जोधा छोड़कर गए थे। इसने गोराधाय और वीरदुर्गा राठौड़ जैसे स्वामीभक्त भी देखे है और मोटाराजा उदयसिंह जैसे मुगलों के आगे समर्पण करने वाले डरपोक शासक भी देखे है। इस दुर्ग ने महाराणा प्रताप के आदर्श रावचंद्रसेन का स्वाभिमान भी देखा है..... जिसने अक़बर के नागौर में संकल्प लिया कि ये रावचंद्रसेन मरते दम तक मुगलों की गुलामी स्वीकार नहीं करेगा। 
और इस दुर्ग ने उस बादशाह को भी देखा जिसके अदम्य साहस और शौर्य से प्रभावित हो शेरशाह सूरी ने कहा था कि एक मुट्ठी बाजरे के लिए मैं अपनी हिंदुस्तान की बादशाहत गवा देता। हाँ, वही मारवाड़ की शान वीर मालदेव। और इसने रूठीरानी भटियाणी (उमादे) की जिद्द भी देखी है।

ऐसे हजारों यौद्धा यहाँ से चले गए, लेकिन ये दुर्ग आज भी उनकी विरासत को लिए अड़िग खड़ा है। 

मैं जब जब-जब अपनी कोठरी में उदास या मायूस हो जाता हूँ। तो ये दुर्ग फ़िर से मुझे रण समर में शस्त्र उठाने का साहस भरता है। इसके निष्ठावान वीर सूरमा मुझे अपनी कोठरी के प्रति निष्ठा दिलाते है। इतना मोटिवेशन पूरी काफ़ी हो जाता है दिनभर के लिए.....फ़िर पुनः स्थापित सेटअप में चला जाता हूँ!! With full Josh!!! मोटिवेट होने के हजारों तरीके है, बस करना आपको ही है.....अब राजी राजी करो या फिर बेमन। तो चलो ख़ुश रहकर किया जाए!!

गुड नाईट दोस्तों!!

✍️© हितेश राजपुरोहित

Friday, February 3, 2023

मारवाड़ी री कहाणी !!


                        
भोपाल में आज दो महीने बाद बारिश का दौर अब जाकर थमा, मैं इतनी इतनी भंयकर बारिश से ऊब गया था। क्योंकि मैं ठहरा थार का बाशिन्दा(मारवाड़ी), इतनी ज्यादा बारिश का आदि नहीं था।

रात को होटल में खाना खाने के बाद, मैं और मेरा मित्र दोनों टहलने निकले। बारिश आज थम चुकी थी। लेकिन वातावरण में अभी भी नमी थी, आसमान सफेद रुई समान बादलों से आच्छादित था। परिवेश में आहिस्ता-आहिस्ता ठंडी हवाएं मेरे ललाट और अधरों पर आकर टकरा रही थी।, सुनसान सड़क,  मंद-मंद रोडलाइट की रोशनी और चारों तरफ मौजूद खमोशी ये बयां कर रही थी कि ये शहर थम चुका है!

जैसे ही हम चलते-चलते आगे बढ़े, रोड के साइड में एक पान का कैबिन दिखा। मेरे मित्र ने मुझसे बोला कि भाई चल पान खा लेते हैं........ भोपाल का पान वैसे भी बड़ा लज़ीज होता हैं। मैंने भी बिना किसी विलंब के अपनी पदचाल कैबिन की और अग्रसर कर दी!
जैसे ही कैबिन पर पहुँचे, मैंने पान वाले से बोला " चचा पान खिला दीजिये ना"
चचा पान बनाने में मशगूल हो गए......................
मैंने चचा से पूछा " चचा आपके यहाँ बीकाजी नमकीन होगी क्या?"

इतने में चचा ने अपनी एक भौंह ऊपर चढ़ा करके मुझसे पूछा " मारवाड़ी हो क्या?"

"जी हाँ, लेकिन आपको कैसे मालूम?" मैंने बोला

एक तो तुम्हारे हिंदी बोलने के लहजे से और दूसरा बीकाजी नमकीन से ( ये राजस्थान की विश्व प्रसिद्ध नमकीन हैं)

"अच्छा ऐसा" मैंने बोला।

दो मिनट की लंबी खामोशी के बाद चचा ने बोला "बेटा एक जमाने में मेरे भी एक बहुत बड़ी हार्डवेयर की दुकान थी।"

"तो अब ये पान का कैबिन कैसे?" मैंने पूछा।

चचा ने अपने होठों की सलवटों को तिरछा करके बनावटी हँसी में बोला "ये सब आपके किसी मारवाड़ी भाई की देन हैं।"

अरे! साला थोड़ी देर पहले अपने मित्र से, मैं बड़ा ज्ञान पैल रहा था .................मारवाड़ी होने का गर्व।
बोल रहा था कि जहाँ न पहुँचे गाड़ी, वहाँ पहुँचे मारवाड़ी!
एक ही क्षण और वाक्य ने मेरे सारे गर्व को नेस्तनाबूद कर दिया...... मैं स्तब्ध खड़ा था, पत्थर की तरह!

हिम्मत करके मैंने चचा से पूछा "आखिर हुआ क्या था चचा?"

उन्होंने फिर चौपड़ा खोल दिया मेहनतकश मारवाड़ी जात का!

बोले "बेटा मेरे दक्षिण भारत में एक हार्डवेयर की एक बड़ी दुकान थी, काफी अच्छी चल रही थी। एक दिन एक मारवाड़ी आया.............
दिखने में मारवाड़ी बड़े सीधे-साधे लगते हैं, वाणी में मिठास तो गुड़ से भी ज्यादा होती हैं और ललाट पर तिलक लगाये, भक्त आदमी.........यही मार खाते है सब.......और मैंने भी खाई!

उसको काम पर रख दिया। उसके कुछ दिन बाद वो बोला सेठ क्यों न अपने काम को थोड़ा बड़ा कर देते है यानी एक दुकान एक और खोल देते है। मैं पूरी शिद्दत और लगन से काम करूँगा।
चचा ने बोला कि मैंने भी बिना कुछ सोचे समझे काम को बढ़ा लिया। एक और दुकान खोल दी......बहुत पैसा इन्वेस्ट किया।

चचा एकदम शांत हो गए। उनके चेहरे पर बरसों पुराना ज़ख्म, आज स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था। चेहरे पर मायूसी स्पष्ट झलक रही थी!

"फिर क्या हुआ चचा?" मैंने पूछा।

फिर होना क्या था। छः महीने बाद रातोंरात बोरिया-बिस्तर बांध के फ़रार हो गया......गोड़े दे दिए हमे!

"हाथ री सफ़ाई जोरदार थी भाइया री, लागे कोई जालोरियों ईस वई" मैंने मन मे बड़बड़ाया।

इस प्रकार की घटनाएं एक मारवाड़ियों को तोड़ सकती है क्या!........एक खराब मछली के कारण पूरे तालाब को गंदा नहीं कहा जा सकता........कुछ भी हो मारवाड़ी यानी व्यापार .....ये पूरा विश्व जानता है....... कोई बिजनेस की डिग्री नहीं फिर भी व्यापार में 8 वी सदी से एकाधिकार जमाना.....ये काबिलियत है मारवाड़ी की!


गर्व से कहो हम मारवाड़ी है........हितेश मारवाड़!!!

नोट- केवल हास्य के लिए.....मारवाड़ियों का इससे कोई लेनादेना नहीं हैं..... मारवाड़ियों को ईमानदारी में किसी प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं हैं!

✍️© हितेश राजपुरोहित "मुडी"

Saturday, October 16, 2021

वो सुनहरी रेत!!

कभी गौर से निहारा है, उस रेत को!
हाँ, वही धोरे वाली सुनहरी रेत!

कभी फ़ुर्सत में ढलती हुई शाम बैठना,
उसकी रूखी देह में, हाँ वही धोरा!

उसकी मख़मली रेत को कभी नंगे पांव स्पर्श करना,
तुम समझ जाओगे विरह की वेदना!!

देखना कभी गौर से उसके धोरे पर पड़ी पगडंडियां को,
एक उम्मीद में है कि ढलते सांझ के साथ वो आएगा!!

उस धोरे के जिस्म पर उकेरे कई जीवो की आकृतियां,
सबूत है कि यहाँ भी कभी रौनक रही होंगी!!
सजता होगा शाम का बाज़ार और संवरती होगी!
छोरी कमली, थार की मुक्कमल मूमल!

शाम के संग वो चढ़ जाती है, धोरे की उच्चई पर,
और अपने अधीर नेत्रों से खोजती है अपने प्रिय को!

प्रिय दूर कहीं धोरे की सुनहरी रेत में ऊँट के संग,
गोरबंध को निहारता हुआ, याद कर रहा होगा अपनी कमली को!

ऊँट-गाड़े के संग अपने की पीड़ा को,
ठूठ सी खड़ी खेजड़ी के साथ साझा करता!

 थार के ह्रदय में बसी यह मनहोरी ढाणियां,
वजूद है, इनके कुनबों की तारीख़ का!

किसी सर्द पूर्णिया को निकलना इसके रेत पर,
तुम्हें आत्मसात करेगा, ये मख़मली मूमल का देह!!

ये सुनहरी रेत और धोरे अपनी कहानी को समेटे!
आच्छादित है यहाँ के रुखड़ो और कुनबों से!!

✍️©हितेश राजपुरोहित




Sunday, October 3, 2021

गाँव मूड़ी का ज़मीनी बदलाव!!

दोस्तों, मुझे गाँवों से बेहद लगाव है! ग्रामीण अंचलों की संस्कृति मेरे ह्रदय में रची-बसी है। मुझे यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि मैं एकदम देहाती मानुष हूँ। इसका मूल कारण यह है कि मेरा बचपन गाँव की संकरी गलियों में गुजरा है और इन गलियों में उड़ती धूल मेरे लिए किसी भभूत से कम पवित्र नहीं है! गाँवों के लहकते बाग और महकते खेत मेरे अंतस्थल में उमंग और आशा के बीज रोपित करते है।

मेरे ग्रामीण अँचलों वाले दोस्त सोच रहे होंगे कि इसमें कौनसी नई बात है, खैर नई बात तो नहीं है लेकिन आज बैठे-बैठे अपने गाँव पर विचार मंथन कर रहा था। तो अनायास मुझे ग्रामीण अंचल की खूबसूरती पर विचार आ गया, जिसे आपसे साझा कर रहा हूं।


पिताजी सरकारी मुलाजिम है इस कारण मेरा स्थानीय निवास स्थान जालोर है, लेकिन मेरा गाँव आना-जाना हर हफ्ते रहता है। वैसे मैं मूलतः गाँव "मूड़ी" का बाशिंदा हूं..….."मूड़ी" आप भी सोच रहे होंगे कि ई साला कौनसे गोले ( ग्रह) पर अवस्थित है!! खैर मेरे लिए यह नई बात नहीं है। जिसको भी मेरे गाँव का नाम बोलता हूं, वो यही कहता है कि यह कहां आया हुआ है? वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की यह जालोर जिले के मुख्यालय से मात्र 14 किलोमीटर दूर स्थित है! स्वरूपरा महादेव मंदिर से मात्र चार किलोमीटर और बिशनगढ़ कैलाशधाम से मात्र तीन किलोमीटर!

लेकिन फिर भी दुनियां से एकदम ओझल, सोरी! सोरी ! दुनियां से नहीं जालोर जिले के लोगों से.....हम मूड़ी वालों के लिए तो यही दुनियां है साहब!!

जैसे दुनियां के नज़रों से मेरा गाँव ओझल है, वैसे ही विकास मेरे गाँव से ओझल है! आपको जानकर हैरानी होगी कि आज आजादी के सत्तर सालों बाद भी गाँव में सामुदायिक स्वास्थ्य भवन नहीं है और ना ही कोई स्वाथ्य विभाग का नुमाइश करने वाला कर्मचारी! और मोदीजी स्मार्ट विलेज की आवाज़ को बुलंद कर रहे है!!

आज भी गाँव से जालोर या बिशनगढ़ जाने के लिए बस की व्यवस्था नहीं है, बारिश के दिनों में गाँव का चौहटा और मुख्य मार्ग कीचड़ से लबालब भर जाते है...गाँवो वालों के चलते नहीं बनता। शर्म की बात है आज देश 5G पर ट्रायल कर रहा है और मेरे गाँव में 2G भी बड़ी मुश्किल से पकड़ता है!!


इसके दोषों का ठीकरा किसके माथे फोड़ो। गाँव वालों के या सत्तर साल से गाँव की नुमाइंदगी करने वाले राजनेताओं के!! मैं नहीं कहता कि इन्होंने आवज़ नहीं उठाई होगी, लेकिन नौबतखाने में बजी तूती को कौन सुन पायेगा! हक और बुनियादी सुविधाएं मांगने से नहीं मिलती , उनको तो छीनना पड़ता हैं हुकूमत और सरकारों से। इसमें कोई दोराय नहीं की आपको इसमें मुँह की खानी पड़ी है।

लेकिन दोस्तों पिछले पंचायत चुनावों के बाद मानो मेरे गाँव की तो एकदम काया ही पलट गयी। जो काम सत्तर सालों में नहीं हो पाया, वो मात्र दो या तीन सालों में हो गया!

आज मुझे यह कहते हुए बड़ा हर्ष हो रहा है की मेरे गाँव की सारी संकरी गालियां रोड़लाइटों से सुसज्जित है और शायद ऐसा सम्पूर्ण रोड़लाइट युक्त गाँव पूरे सायला खंड में मूड़ी ही है!! जिस गाँव को कोई जानता नहीं था, आज रात्रि के समय तीन-चार किलोमीटर दूर से घनी आबादी युक्त बड़े खेड़ा गांव की तरह नजऱ आता है!


यह ऐसे ही बातों से नहीं हुआ होगा, इसके लिए सरपंच मोहदया ने सांसद निधि से फंड को लाया। जो इतना आसान नहीं होता, मूड़ी जैसे छोटे गाँव के लिए!

सिर्फ रोड़लाइट ही नहीं, आज इन दो सालों में गाँव में सार्वजनिक श्मशान घाट से लगाकर गायों के लिए गौशाला तथा सामुदायिक स्वास्थ्य भवन भी निर्माणाधीन है और  जल्द ये सब सेवा के लिए हाज़िर हो जाएंगे!!

वाकई इस विकास को पहुँचने में सत्तर साल से ज्यादा समय लग गया, ताज्जुब होता है!! दया आती है उन सत्तर सालों के राजनीतिक नेतृत्व करने वाले महानुभावों पर, लानत है उनके जीवन पर.....आप अपने गाँव का विकास भी नहीं करा पाए!!

लेकिन पिछले पंचायत चुनाव में पड़ोसी गाँव नरसाणा की युवा महिला शक्ति श्रीमती दुर्गा कंवर जी ने कमान संभाली और गाँव वालो को उनके बुनियादी हक हुक्मरानों के गलियारों से छीनकर दिए। क्योंकि मांगने से शायद नहीं मिलते, अगर मिलते तो पहले ही आ जाते!

और इस धारणा को तोड़ा की महिलाएं राजीनीति नहीं कर सकती। उन्होंने यह सिद्ध करके दिखाया कि अगर कुछ कर गुजरने का ठान ले, तो बंजर भूमि से भी हरियाली की चुनर उगाई जा सकती है!

मैं वैसे आलोचनात्मक प्रवृति का मानुष हूँ। हर बात को आलोचना के नजरिये से देखता हूं लेकिन इन दो सालों में वाकई गाँव में विकास हुआ है!!

मैं सम्पूर्ण मूड़ी वालों की तरफ से सरपंच मोहदया और श्रीमान जोगेन्द्र सिंहजी का आभार व्यक्त करता हूं कि उन्होंने हम गांव वालों को बुनियादी सुविधाएं दी! और आशा करता हूँ कि आप ऐसे ही निःस्वार्थ भाव से आगे भी पूरे जोश और लगन के साथ गाँव का चहुमुंखी विकास करेंगे!

विशेष निवेदन :- गाँव के चौहटे वाले मुख्य मार्ग को व्यवस्थित कराने का कष्ट कराए!! आम दिनों में भी यह मार्ग पानी और कीचड़ से भरा रहता है!! मुझसे आशा ही नहीं, अपितु पूर्ण विश्वास है कि आप इस समस्या का जल्द ही पूर्ण समाधान करेंगे!!गाँव मूड़ी का ज़मीनी बदलाव!

वैसे मैंने अपने गाँव का आदर्श और स्मार्ट मॉडल सोच रखा है। कभी मिलना हुआ तो भाईसाहब आपसे इस बाबत जरूर विचार साझा करूँगा!!

✍️©हितेश राजपुरोहित "मूड़ी"

Saturday, July 24, 2021

रिजल्ट!!

आज सभी सज्जनों और दोस्तों के स्टेटस पर 12वी कक्षा के परिणाम देख रहा हूं! सभी अपने हितैषियों के नतीज़े एक दूसरे से साझा कर रहे है! मौहल हल्का और खुशनुमा कर दिया इस परिणाम ने!! वाकई कितने शानदार रहे है, इस बार के नतीज़े !!

अगर आप भी हल्का और खुशनुमा माहौल महसूस कर रहे हो, तो शायद आप निष्क्रिय या जड़ हो चुके हो!! मैं शाम से हैरत में हूं! आपको मूल्यांकन करने का बोला था, आपने तो मनोरंजन कर दिया!! मैंने सोचा था कि वाकई कितना अभूतपूर्व परिणाम जारी होगा, लेकिन आपने तो छात्रों को बैशाखी पकड़ा दी! आपने तो सबको एक ही लकड़ी से हांकना....! ये मूल्यांकन का कौनसा पैमाना है?

अरे! आप कबतक इस महामारी के ओट में हर वर्ग का अहित करते रहोगे! आप आख़िर छात्रों को उनकी असलियत बताने में क्यों डर रहे हो! वे अपने वास्तविक स्वरूप को भलीभांति जानते है। वे इतने परिपक्व हो चुके है कि खुद का स्वविवेक से मूल्यांकन कर सकते है!!


आप इस प्रकार के परिणामों का मंजर दिखाकर छात्रों को नंबरो की गणना तक सीमित कर दोंगे! उनको अभी बहुत कुछ समझना है! उनको बताइये की वाकई नम्बरों में इज़ाफ़ा होना, ज्ञान में इज़ाफ़ा होने के समान नहीं है!! जुगनुओं को बैशाखी देकर हम कब तलक चाँद बनाते रहेंगे! ये आधुनिकता का दौर है जनाब.....यहाँ कागज़ के ऊपर अंकित नम्बरों से आपको कोई नॉकरी देना वाला नहीं है! आपको भी इस आधुनकि समाज की परखनी वाली अग्नि में जलना होगा, अपनी आहुति देनी होगी! क्योंकि यहां नंबर नहीं, हुनर देखा जाता है! केवल अंक आपके व्यक्तित्व का कभी भी सही मूल्याकंन नहीं कर सकते, इल्म तो वो जो आपके किरदार से झलकता हो!!

खैर ये कोई बौद्धिक पोस्ट नहीं थी!! आपने कुछ ज्यादा ही सोच लिया! ये तो मेरे कॉलोनी में किसी परिचित के 95वे प्रतिशत अंक आ गए। तो मुझे लगा वाकई मज़ाक होता है.......धन्यवाद शिक्षा विभाग मूल्यांकन की जगह मनोरंजन करने के लिये!! ई सब रॉंग नंबर है.......अब तनिक थोड़े समय बाद ई सब ISRO में वैज्ञानिक बनेंगे, कोई खाड़ी देशों में उच्चायुक्त बनेगा! तो कोई शेयर मार्केट में बड़ा इन्वेस्टमेंट करेगा! तो कोई NASA का हैड! कोई हार्डवर्ड में प्रोफेसर...... कोई लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पीएचडी करेगा!! ओ साहब! हमको तो याद रखोगे ना!!

✍️© हितेश राजपुरोहित

Saturday, July 17, 2021

क्रिकेट और जालोर!!

ये वो दौर था जब विश्व क्रिकेट में ऑस्ट्रेलिया की एकतरफ़ा  हुकूमत चलती थी। उसके गेंदबाजों का सामना करना यानी मौत को दावत देना! जैसन गिलेस्पी, मिचेल जॉनसन और  ग्लेन मैक्ग्राथ जैसे तेजतर्रार गेंदबाज और साथ मे गेंद को नागिन के फन की भांति नचाने का हुनर (स्विंग) ........ फिर क्या ही कहने!!  बल्लेबाज तो दूर की बात, हम जैसे क्रिकेट प्रेमी दूरदर्शन पर मैच देखने से डरते थे! उनका लंबा रनअप और लंबी कद-काठी! जब गिलेस्पी भागकर बोलिंग स्ट्राइक से आता था। तो मानो ऐसा लगता था कि थ्री हंड्रेड मूवी का लियोनाइड्स अपना भाला लेकर आ रहा हो!

2007 का ये दौर ऐसा था कि पूरा भारत क्रिकेट के रंग में रंग चुका था और चारों तरफ़ क्रिकेटर प्रेमी भरे पड़े थे! आपको हिंदुस्तान में पान के गल्ले  से लगाकर चाय की थड़ी पर मौजूद रेडियो में ये आवाज बर्बस ही सुनाई पड़ती..... "ऑफ साइड की तरफ हल्के हाथों से धकेल दिया है और फिलेंडर पीछे भागता हुआ! गेंद बॉउंड्री लाइन के पार, BSNL चौका!" 

2007 का ये दौर विश्व क्रिकेट के लिए तो बहुत ही बेहतरीन रहा, लेकिन भारतीय टीम के लिए यह उसके इतिहास का सबसे दुःखद समय रहा! 2007 के वर्ल्डकप की धुन भारत के साथ साथ पूरे विश्व पर सवार थी। भारत भी 1983 के वर्ल्डकप के पलों को पुनः देखना चाहता था और 2003 के फाइनल की गलतियों को सुधारना चाहता था!


लेकिन विधान विधि का कौन टाल सकता है! 

2007 के वनडे वर्ल्डकप में यह भारतीय टीम राहुल द्रविड़ की कप्तानी में अपना पहला ही मैच बांग्लादेश के आगे हार गई! भारतीय टीम में सिर्फ दादा और युवराज ने अपनी भूमिका निभाई, बाकी सारे प्लेयर 20 से ज्यादा व्यक्तिगत स्कोर नहीं बना पाए! इस मैच में धोनी शून्य और वेरेन्द्र सहवाग दो रन पर पवेलियन की ओर लौट गए! इस मैच के बाद राँची में धोनी के निर्माणाधीन घर की दीवारें गिरा दी गई और वीरेंद्र सहवाग का पुतला जलाया गया! इस वर्ल्डकप के बाद राहुल द्रविड़ को अपनी कप्तानी से हाथ धोना पड़ा और  ग्रेग चैपल को कोच के पद से हटा दिया गया!!

इतना दुःख होने के बाद भी, chill buddy  ये भारत है!यहाँ क्रिकेट खेला नहीं जिया जाता है! क्रिकेट लोगों के खून में है! उनके जीवन का एक हिस्सा है!! 


इस दौर में भारत के मानचित्र पर थार के मरुस्थल में मौजूद राजस्थान का जालोर जिला अपने ही क्रिकेट में मगन था!!  
स्टेडियम, कॉलेज ग्राउंड और शिवजी नगर स्कूल के क्रिकेट ग्राउंड शाम को लौंडो से भर जाते थे! सारे मैच पैसों की शर्त पर रखे जाते थे क्योंकि शो मैच में कोई भी एफर्ट नहीं देता था। खिलाड़ी अपने पूरे दमखम के साथ खेलते थे। छक्के सीधे शिवाजी नगर स्कूल से आहोर चौराये की तरफ लगा दिए जाते थे और कभी तो सीधा पुलिस लाइन में! शाम को गेम खत्म होने के बाद दोनों टीम के सारे प्लेयर कालूबा के प्याऊ पर पानी पीते हुए मैच पर पुनः चर्चा करते है!


वैसे जालोर में क्रिकेट खेला नहीं, अपितु जिया जाता है!!
कौन भूल सकता है, वो गर्मियों में कानदासजी के द्वारा स्टेडियम में करवाये जाने वाले टूर्नामेंट!!.....पूरा जालोर हाजिर हो जाता था....स्टेडियम की देहरी पर!!

अब सिर्फ अफ़सोस और मलाल के सिवा हमारे पास कुछ नहीं है!! क्या कहूं....आज कितने ही सालों से जिले के क्रिकेट असोसिएशन को भीनमाल शिफ्ट कर दिया है!! जालोर का स्टेडियम अपनी बदहाली पर आँसू के सिवा कर भी तो क्या सकता है!! 

दो खेमों में वर्चस्व की लड़ाई ने इस जिले में क्रिकेट को बेमौत मार दिया!! खैर मुझे उस परमात्मा पर पूरा भरोसा है कि वो दोषियों को सजा देगा!

फिर से जालोर स्टेडियम के में खिलाड़ियों की चहलपहल होगी! फिर से मिनी ipl का जश्न होगा!! थोड़ा सब्र रखो दोस्तो!!......हम सब को अब बागी बनना होगा! उन के खिलाफ आवाज़ उठानी होगी!! हर उस खेल असोसिएशन के खिलाफ विद्रोह करना होगा! जो खिलाड़ियों के मूलभूत अधिकारों से खेलते है!!!

अब समय आ गया है!! बग़ावत का दौर शुरू हो गया है!! अब आवाज़ दूर तलक जाएगी!!

✍️© हितेश राजपुरोहित "मूड़ी"


Monday, May 3, 2021

प्यारी बहना!!



प्यारी बहना, आज तुम्हारी विदाई को तीसरा दिन है!!
तुम्हारी विदाई के साथ-साथ, घर की रौनक भी तुम्हारे साथ चली गई!
घर के आँगन में खड़ा पेड़, आज एकदम मायूस शाखाएँ झुकाये खड़ा है......एकदम निश्चल!!
एकदम वीरान....ये कैसा दर्द है....कुस समझ नहीं आ रहा है, बस महसूस कर रहा हूं!!

जिस आँगन में तुमने गुजारा था हसीन बचपन, जहाँ तुम्हारी यादों का एक संदूक है!! आज उस आँगन को छोड़कर जा रही हो!!

कितना मुश्किल होता है एक बेटी होना!!...यादों के सहारे एक नए सिरे से अपना जीवन शुरू करना....एक दर्द, एक टीस..... निःशब्द!!!

विदाई के वक्त तुम्हारे आँसू देखकर, एक पल को मैं अंदर से फुट पड़ा था! मैंने बहुत कोशिश, लेकिन मैं अपने आँसुओं को रोक नहीं पाया! हल्क़ (गले) के नीचे एक दर्द.....जिसे समझा नहीं जा सकता, सिर्फ महसूस किया जा सकता है....असहनीय!!

प्यारी बहना तुम्हारी विदाई के वक्त तुम्हारा पिताजी के गले लगकर रोना....वाकई वो पल मेरे जिंदगी के यादों के संदूक का सबसे मुश्किल पल था!! पिताजी कितने कठोर होने के बावजूद अपने आँसुओं को नहीं रोक पाए!! वो भी मेरी तरह खुलकर आँसू बहाना चाहते थे, लेकिन इस निष्ठुर समाज में हम मर्दों के आँसू निषेध है! समाज क्या कहेगा! मर्द होकर आँसू ! उफ़्फ़ कमाल है!!!......इस निष्ठुर समाज को कोई बताओ कि वो मर्द से पहले इंसान है! जिसमें संवेदना होती है!! वो भी रोना चाहता है!!

खैर पिताजी ने तो अपने आँसुओं को रोक दिया, लेकिन मैं  खुलकर आँसू बहाना चाहता था!! मैं तुम्हारी विदाई के बाद जब अपने आँसुओ को अपने गले में दबाकर घर आया.....घर एकदम वीरानसा प्रतीत हो रहा था, घर के हर एक हिस्से में नज़र आता खालीपन मुझे खाये जा रहा था!


जैसे ही मैंने माँ को देखा, मैं बेतरतीब भागता हुआ। माँ के कंधे पर अपना सिर रखकर रो पड़ा....मैंने बहने दिए अपने आँसुओं को! मैं चाहकर भी नहीं रोक पाया, अपने भीगे हुए नैनो को! उस क्षण घर के हर एक सदस्य की आँखें आँसुओं से भरी पड़ी थी!!

आज सवेरे जब मैंने तुम्हारी सिलाई मशीन की ओर देखा तो वो मुझसे पूछ रही थी कि मेरी मालकिन कब आयेगी!! मैं उसे कुछ जवाब नहीं दे पाया। उससे नजरें बचाकर मैं जैसे ही घर के बाहर आया। तो तुम्हारी स्कूटी मुँह लटकाये, एकदम मायूस खड़ी थी!

 आज सवेरे जब मैं स्नान करके बाहर आया तो मुझे अपने कपड़े ठिकाने पर नहीं मिले! इतनो वर्षो से मुझे सारे कपड़े एकदम सलीके से रखे हुए मिल जाते थे, आदत हो गयी थी!! अब अपनी हर आदत को मुझे बदलना होगा!! 

पिताजी को अब दूसरों के हाथ की चाय नहीं जमती!! शाम को चार बजते ही नींद से उठकर इंतज़ार करता हूं.... तुम्हारे हाथ की चाय का!!

सही मायनों में प्यारी बहना तुम घर का असल बेटा हो!! पिताजी हर काम में तुम्हारी राय जरूर लेते!! घर की सारी जिम्मेदारियों को तुम अपने कंधों पर लेकर चलती हो!

बेटा तो सिर्फ एक परिवार को संभालता है, लेकिन बेटियां दो परिवारों को संभालती है!! आज मोबाइल में पुरानी तस्वीरें देख रहा था! तुम्हारी पुरानी तस्वीरों को देखकर सोचने लगा, वक़्त कितना जल्दी बीत जाता है!! आज तुम  ब्याह दी गयी हो!!! 

प्यारी बहना तुम्हें याद है स्कूल के वो हसीन दिन......जब मैं रोता हुआ या फिर पेटदर्द का बहाना बनाकर तुम्हारे पास आ जाता था!! तुम सही मायनों में मेरे लिए माँ का दूसरा स्वरूप हो! माँ जब ननिहाल जाती थी तो तुम्हारी पायलों की आवाज मुझे माँ का आभास करवाती थी!!

ये (विदाई) तो संसार का नियम है, जिसे सहर्ष हमें स्वीकार करना होगा!! और मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता हूं कि आपका वैवाहिक जीवन ख़ुशी से गुज़रे! आप इसी तरह उस (ससुराल) घर को भी खुशियों से भर दो!!! भगवान सारी खुशियाँ आपके झोली में डाल दे!!

आपका हितेश!!!

✍️© हितेश राजपुरोहित "मूडी"


जोधाणा की जुबानी।

13 मई 2023 शहर जोधाणा (जोधपुर), जेठ की तपती शाम में गर्मी से निजात पाने के लिए जैसे ही छत पर चढ़ा। यक़ीनन मैं काफी हल्का महसूस कर रहा था। इसक...