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Saturday, October 16, 2021

वो सुनहरी रेत!!

कभी गौर से निहारा है, उस रेत को!
हाँ, वही धोरे वाली सुनहरी रेत!

कभी फ़ुर्सत में ढलती हुई शाम बैठना,
उसकी रूखी देह में, हाँ वही धोरा!

उसकी मख़मली रेत को कभी नंगे पांव स्पर्श करना,
तुम समझ जाओगे विरह की वेदना!!

देखना कभी गौर से उसके धोरे पर पड़ी पगडंडियां को,
एक उम्मीद में है कि ढलते सांझ के साथ वो आएगा!!

उस धोरे के जिस्म पर उकेरे कई जीवो की आकृतियां,
सबूत है कि यहाँ भी कभी रौनक रही होंगी!!
सजता होगा शाम का बाज़ार और संवरती होगी!
छोरी कमली, थार की मुक्कमल मूमल!

शाम के संग वो चढ़ जाती है, धोरे की उच्चई पर,
और अपने अधीर नेत्रों से खोजती है अपने प्रिय को!

प्रिय दूर कहीं धोरे की सुनहरी रेत में ऊँट के संग,
गोरबंध को निहारता हुआ, याद कर रहा होगा अपनी कमली को!

ऊँट-गाड़े के संग अपने की पीड़ा को,
ठूठ सी खड़ी खेजड़ी के साथ साझा करता!

 थार के ह्रदय में बसी यह मनहोरी ढाणियां,
वजूद है, इनके कुनबों की तारीख़ का!

किसी सर्द पूर्णिया को निकलना इसके रेत पर,
तुम्हें आत्मसात करेगा, ये मख़मली मूमल का देह!!

ये सुनहरी रेत और धोरे अपनी कहानी को समेटे!
आच्छादित है यहाँ के रुखड़ो और कुनबों से!!

✍️©हितेश राजपुरोहित




7 comments:

  1. परन्तु इसी रेत ने प्राचीन इतिहास को अपने अंदर कहीं छिपा लिया । बहुत खूब भाई 👍👏

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  2. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, आपके माध्यम से दी गई जिससे इन रेगिस्तानी धोरो में अलग ही रंग बिखेरा है।

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  3. आ धरती धोरा री , आ धरती मीठा मोरा री

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  4. सजीव चित्रण, तकनीकी भाषा मे कहूँ यो 3D विसुअल। शुभकामनाएं।

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  5. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति

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