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Saturday, July 17, 2021

क्रिकेट और जालोर!!

ये वो दौर था जब विश्व क्रिकेट में ऑस्ट्रेलिया की एकतरफ़ा  हुकूमत चलती थी। उसके गेंदबाजों का सामना करना यानी मौत को दावत देना! जैसन गिलेस्पी, मिचेल जॉनसन और  ग्लेन मैक्ग्राथ जैसे तेजतर्रार गेंदबाज और साथ मे गेंद को नागिन के फन की भांति नचाने का हुनर (स्विंग) ........ फिर क्या ही कहने!!  बल्लेबाज तो दूर की बात, हम जैसे क्रिकेट प्रेमी दूरदर्शन पर मैच देखने से डरते थे! उनका लंबा रनअप और लंबी कद-काठी! जब गिलेस्पी भागकर बोलिंग स्ट्राइक से आता था। तो मानो ऐसा लगता था कि थ्री हंड्रेड मूवी का लियोनाइड्स अपना भाला लेकर आ रहा हो!

2007 का ये दौर ऐसा था कि पूरा भारत क्रिकेट के रंग में रंग चुका था और चारों तरफ़ क्रिकेटर प्रेमी भरे पड़े थे! आपको हिंदुस्तान में पान के गल्ले  से लगाकर चाय की थड़ी पर मौजूद रेडियो में ये आवाज बर्बस ही सुनाई पड़ती..... "ऑफ साइड की तरफ हल्के हाथों से धकेल दिया है और फिलेंडर पीछे भागता हुआ! गेंद बॉउंड्री लाइन के पार, BSNL चौका!" 

2007 का ये दौर विश्व क्रिकेट के लिए तो बहुत ही बेहतरीन रहा, लेकिन भारतीय टीम के लिए यह उसके इतिहास का सबसे दुःखद समय रहा! 2007 के वर्ल्डकप की धुन भारत के साथ साथ पूरे विश्व पर सवार थी। भारत भी 1983 के वर्ल्डकप के पलों को पुनः देखना चाहता था और 2003 के फाइनल की गलतियों को सुधारना चाहता था!


लेकिन विधान विधि का कौन टाल सकता है! 

2007 के वनडे वर्ल्डकप में यह भारतीय टीम राहुल द्रविड़ की कप्तानी में अपना पहला ही मैच बांग्लादेश के आगे हार गई! भारतीय टीम में सिर्फ दादा और युवराज ने अपनी भूमिका निभाई, बाकी सारे प्लेयर 20 से ज्यादा व्यक्तिगत स्कोर नहीं बना पाए! इस मैच में धोनी शून्य और वेरेन्द्र सहवाग दो रन पर पवेलियन की ओर लौट गए! इस मैच के बाद राँची में धोनी के निर्माणाधीन घर की दीवारें गिरा दी गई और वीरेंद्र सहवाग का पुतला जलाया गया! इस वर्ल्डकप के बाद राहुल द्रविड़ को अपनी कप्तानी से हाथ धोना पड़ा और  ग्रेग चैपल को कोच के पद से हटा दिया गया!!

इतना दुःख होने के बाद भी, chill buddy  ये भारत है!यहाँ क्रिकेट खेला नहीं जिया जाता है! क्रिकेट लोगों के खून में है! उनके जीवन का एक हिस्सा है!! 


इस दौर में भारत के मानचित्र पर थार के मरुस्थल में मौजूद राजस्थान का जालोर जिला अपने ही क्रिकेट में मगन था!!  
स्टेडियम, कॉलेज ग्राउंड और शिवजी नगर स्कूल के क्रिकेट ग्राउंड शाम को लौंडो से भर जाते थे! सारे मैच पैसों की शर्त पर रखे जाते थे क्योंकि शो मैच में कोई भी एफर्ट नहीं देता था। खिलाड़ी अपने पूरे दमखम के साथ खेलते थे। छक्के सीधे शिवाजी नगर स्कूल से आहोर चौराये की तरफ लगा दिए जाते थे और कभी तो सीधा पुलिस लाइन में! शाम को गेम खत्म होने के बाद दोनों टीम के सारे प्लेयर कालूबा के प्याऊ पर पानी पीते हुए मैच पर पुनः चर्चा करते है!


वैसे जालोर में क्रिकेट खेला नहीं, अपितु जिया जाता है!!
कौन भूल सकता है, वो गर्मियों में कानदासजी के द्वारा स्टेडियम में करवाये जाने वाले टूर्नामेंट!!.....पूरा जालोर हाजिर हो जाता था....स्टेडियम की देहरी पर!!

अब सिर्फ अफ़सोस और मलाल के सिवा हमारे पास कुछ नहीं है!! क्या कहूं....आज कितने ही सालों से जिले के क्रिकेट असोसिएशन को भीनमाल शिफ्ट कर दिया है!! जालोर का स्टेडियम अपनी बदहाली पर आँसू के सिवा कर भी तो क्या सकता है!! 

दो खेमों में वर्चस्व की लड़ाई ने इस जिले में क्रिकेट को बेमौत मार दिया!! खैर मुझे उस परमात्मा पर पूरा भरोसा है कि वो दोषियों को सजा देगा!

फिर से जालोर स्टेडियम के में खिलाड़ियों की चहलपहल होगी! फिर से मिनी ipl का जश्न होगा!! थोड़ा सब्र रखो दोस्तो!!......हम सब को अब बागी बनना होगा! उन के खिलाफ आवाज़ उठानी होगी!! हर उस खेल असोसिएशन के खिलाफ विद्रोह करना होगा! जो खिलाड़ियों के मूलभूत अधिकारों से खेलते है!!!

अब समय आ गया है!! बग़ावत का दौर शुरू हो गया है!! अब आवाज़ दूर तलक जाएगी!!

✍️© हितेश राजपुरोहित "मूड़ी"


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