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Wednesday, July 1, 2020

दुःख


बारिश अभी रुकी है, ठंडी बयार मेरे चित को आहिस्ता आहिस्ता अपने आगोश में ले रही है, आसमान में काले मेघ अभी तक अपना विराट स्वरूप लिए मुस्तैद है!

थोड़ा समय बीत जाने के बाद ये बंजर पड़ी भूमि भी हरी चुनर ओढ़ लेंगी और चारों तरफ खुशनुमा मौसम होगा!

लेकिन! मेरे अंतस्थ का माहौल दुःखों से भरा पड़ा है!
अनगिनत दुःखों का ये जाल हलक के नीचे दबा पड़ा है.....जिसे चाहकर भी मैं कभी, किसी से बया नहीं कर पाता हूँ!

जब इन दुखों के बारे में गहन चिंतन करता हूं, तो ऐसा लगता है मानों मेरे हलक के नीचे एक दर्द की टीस उभर आती है, सिर्फ आँखों से आँसू नहीं निकलते!

मैं हर पल मर-मर के जीवन जिये जा रहा हूं, नजाने इन दुःखों से कब निज़ात पाऊँगा.... इक उम्मीद के सहारे आसमां को ताकते, मैं सोच ही रहा था कि काले मेघों ने तेज गर्जन के साथ प्रचंड रूप धारण कर, तेज बौछार प्रारम्भ कर दी!
मैं सुनसान सड़क से बेतरतीब भागता और हांफता हुआ घर की तरफ़ दौड़े जा रहा हूँ..... इसी बीच ख़याल आया कि जिंदगी भर इंसान ऐसे ही अपने घर (मौत) की तरफ़ बेतरतीब भागते जाता है और अंततोगत्वा चला जाता है.....इस दुनियावी बवालों से दूर, बहुत दूर.......अपने घर!😢

✍️©हितेश राजपुरोहित "मूडी"

7 comments:

  1. यथार्थ की तरफ शब्द...... मन की हताशा भी इस खुशनुमा मौसम से दूर नहीं होती । कुछ इस प्रकार से उम्र के पड़ाव ने घेरा है

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  2. बहुत सुंदर 👌👌👌

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