प्यारे पापा और मम्मी, आप इस दुनिया के सबसे अच्छे माता-पिता हो। इसमें कोई दोराय नहीं है, लेकिन मैं जीवन के इस छोटे से दौर में कभी एक अच्छा बेटा साबित नहीं हो पाया और ना ही आपके अरमानों पर खरा उतर पाया!
मुझे नहीं मालूम कि इस फाँसी के फंदे से जीवन का क्या होगा? लेकिन इतना जरूर मालूम है कि मेरे दर्द की यह लम्बी टीस समाप्त हो जाएगी और उन तमाम सवालों के उत्तर देने नहीं पढ़ेंगे, जो यह समाज मुझसे पूछता है!
आख़िर कब तलक मैं यह भौकाल सहन कर पाता, इंसान हूँ मशीन नहीं! ......मेरे भी कुछ सपने थे, आशाएं थी, संवेदनाएं थी!
वर्तमान में जहाँ देखों वहाँ इस समाज ने एक भौकाल मचा रखा है और कमाल की बात यह है कि अभिभावक इस भौकाल के भार को खुशी खुशी अपने कंधों पर लाद, आगे बढ़ा रहे है!
सारे अभिभावक अपने बच्चों को मशीन मान बैठे है, हाँ मानता हूँ कि यह वर्तमान का दौर प्रतिस्पर्धा का दौर है, लेकिन यह कैसी प्रतिस्पर्धा?
जहाँ उसके बचपन के खुशनुमा हसीन पलों को नजरअंदाज कर, आप उसे ट्यूशन और स्कूल के बोझ तले दबा देते हो! आपको तो बस अपने समाज और पड़ोस में अपने स्टैंडर्ड को ऊँचा रखने के लिए और दूसरे अभिभावकों से होड़ के कारण यह सुनने की चाहत है कि फलाने के बच्चें ने इस बार मैरिट टॉप की, IIT का एग्जाम क्रैक कर दिया, वगैरह वगैरह!!
कभी बिन मन के मुझसे पूछ लेते की आख़िर मुझे क्या करना था?......मुझे नहीं करना था एग्जाम क्रैक, मुझे नहीं आना था मैरिट में!
जिस भी अभिभावक को देखों अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूल और ढेर सारे ट्यूशन पढ़ाने का भूत सवार हो गया है। इंग्लिश का, मैथ्स का, साइंस का.....कभी उस बच्चें से पूछा उसको क्या करना है?
आप इतनी महंगी स्कूलों और ट्यूशनों के जरिये यह तो समझा दोंगे की दो और दो चार होते है, लेकिन यह कब समझा सकोगे की खुश कैसे रहा जाए और जीवन के विकट समय को कैसे जीवटता के साथ जिया जाए!
मुझे यह तो मालूम है कि दो को दो गुणा करने से पर चार होता है, लेकिन मुझे यह नहीं मालूम कि जीवन मे खुश कैसे रहा जाता हैं। क्या आपको मालूम हैं?
अगर है तो वाकई में आप खुशकिस्मत इंसान हैं।
आप सारे अभिभावकों की यही समस्या है कि आप चाहते हो कि मेरा बच्चा समाज के चार लोगों के बीच रौबदार अंग्रेजी बोल पाए, अपना और अपने पिता का स्टैंडर्ड मेंटन रख पाए!......आपने इस कारण उसे चार लोगों के बीच अंग्रेजी तो बोलना सीखा दिया, लेकिन निहायत ही शर्म की बात है कि वो बच्चा समाज के चार लोगों के सामने अपने दादा, पड़-दादा का नाम नहीं बता पाता क्योंकि आपने कभी उसको बताया ही नहीं, आपको तो बस रौबदार अंग्रेजी से मतलब था!
मैं भी पागल हूं,किसको समझा रहा हूं! अगर समझ पाते तो एक बार झूठा ही सही मुझे पूछ तो लेते की आखिर बेटा तुझे क्या करना है?
बस और कुछ नहीं कहना चाहता ......मानता हूँ कि आप हमारे भविष्य को लेकर चिंतित हो, लेकिन चिंता से कुछ भी हल नहीं होने वाला उसके लिए तो इस पूरी पीढ़ी को चिंतन करना होगा........!!
प्यारे अभिभावकों गलती आपकी भी नहीं है, आपने अपने जीवन का सिर्फ़ भयानक चेहरा (बेरोजगारी और नॉकरी) ही देखा है, जरा इससे अपनी नज़रें हटाकर देखों...... जीवन के कई हसीन चेहरे है!
काग़ज़ की मार्कशीट आख़िर कैसे किसी बच्चे का भविष्य तय कर सकती है?........अंकों के इस भंयकर जाल में हम बच्चें तिल-तिल के मर रहे है!
सारे अभिभावकों से मेरा बस इतना ही कहना कि है अपने बच्चों को रौबदार अंग्रेज़ी के साथ-साथ तहज़ीब और संस्कार भी सिखाए........ आख़िर किसी को तो इन संस्कारों को आगे की पीढ़ी को वसीयत के रूप में देना होगा.....इस बोझ को अपने कंधों पर लेना होगा!
माँ को मेरा प्रणाम कहना और............
हां, अगर हो सके तो मेरे जैसे हज़ारों बच्चों को इस फाँसी के फंदे से बचाने का चिंतन जरूर करें, चिंता मत करना.....चिंता किसी भी समस्या का हल नहीं है!!
हो सके तो मुझे माफ़ कर देना......आपका प्रिय बेटा!
नोट:- नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर घंटे एक छात्र आत्महत्या करता है, जिसमें हर दिन लगभग 28 आत्महत्याएं होती हैं। NCRB के आंकड़ों से पता चलता है कि 2018 में 10,159 छात्रों की आत्महत्या हुई, 2017 में 9,905 और 2016 में 9,478 छात्रों की वृद्धि हुई।
✍️© हितेश राजपुरोहित "मूडी"