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Saturday, January 4, 2020

ट्रैन का सफर !

आज ट्रैन में दूसरा दिन है, सफ़र अभी तक जारी है। भोपाल जोधपुर एक्सप्रेस ट्रेन की बोगी में बैठा-बैठा ऊब गया हूँ!

मन में एक ख़्याल बार-बार उमड़ता है कि ये जिंदगी का सफर कब तलक जारी रहेगा। कब तलक आख़िर मुझे यूँही संघर्ष करना होगा...........!!!

इन्हीं ख्यालों के बीच मशगूल, जब में झाँकता हूँ बोगी की खिड़की से बाहर............देखता हूं कुछ हर-भरी और लहराती फैसले......इन फसलों के बीच दिखता है एक हाड़-मांस का पुतला! ....…..जिसे हम सब किसान कहते है।

इस किसान के तन के कपड़े जब फट जाते है और सूरज की झुलसाने वाली किरणें इनकी देह को जलाती है....तब जाकर कही ये खेत महकते है और फसलें लहराती है!
ये किसान जब कलम रूपी हल को कागज़ रूपी खेत पर चलाता है, तब कही जाकर शब्द रूपी फसल तैयार होती है!
                 मैं देख रहा हूं खेत के मेड़ पर बैठे, उदास और थके-हारे उस किसान को....….जो ताउम्र हल चलाते-चलाते कभी भी अपनी समस्याओं को हल नहीं कर पाता!

चाय-चाय, गर्म चाय..... मसाले वाली, अदरक वाली....चाय लेलो!
इस ध्वनि ने मेरे ख़यालो की दुनियां को नेस्तनाबूद कर दिया!

सांभर की भूमि आ चुकी है......जहाँ तक नजर जा रही है, सफेद दूधिया तालाब दिखाई दे रहे है........लेकिन ये सफेद दूधिया तालाब वास्तव में लवणीय नमक की झीलें है।
 
थोड़े दिनों पहले ये सांभर की भूमि पूरे देश के अखबारों की सुर्खियों में थी, इसका कारण था हजारों पक्षियों की मौत!
बेजुबान परिंदों की कौन सुनेगा......इस मुल्क में तो इंसानों की भी नहीं सुनी जाती!

जो पूरे भारत में नमक के उत्पादन में अग्रणी है, ऐतिहासिक रूप से ये प्राचीन टेथिस सागर के अवशेष है और वर्तमान में  लोगों के मुँह से बंजर भूमि!

यहाँ से शुरू होने वाली ये ऊसर (बंजर) भूमि नागौर और जोधपुर तक फैली है.......…..इस बंजर भूमि को देख, ट्रैन के सारे मुसाफ़िर सम्पूर्ण राजस्थान की कल्पना इसी तरह की बंजर भूमि के रूप में कर रहे है!

मैं बोगी के गेट पर खड़ा-खड़ा देख रहा हूं इस बंजर भूमि को, ठंडी सर्द हवाएं मेरे ललाट को छूकर मेरे अंतस्थ को आनंदित कर रही है........जहाँ तक नजर पड़ रही है वहाँ तक रेतीली भूमि नजर आ रही है, खेत बंजर पड़े है......खेतों के बीच में असंख्य खेजड़ी के वृक्ष दिखाई पड़ रहे है......वो खेजड़ी के वृक्ष ठूठ के समान पत्तियों से रहित .....निश्चल से खड़े है!

ये बंजर भूमि है, ये बंजर भूमि है.....की आवाज मेरे कानों में चूब रही है.........इसी बीच मैंने पुनः उस भूमि को देखा, अबकी बार सब कुछ अलग था ......भौतिक रूप से कुछ नहीं बदला था, लेकिन मेरे  विचारों में एक नयापन आ गया था।

मैं कैसे भूल सकता हूँ कि ये भूमि गिरधर गोपाल के प्रति प्रेम और इबादत का अनुपम उदाहरण देने वाली और अपने जीवन को उस प्रभु के चरणों में समर्पित करने वाली कृष्णभक्त मीरा की भूमि है। जिसका  नाम आज भी हिंदुस्तान के इतिहास में अमर उज्ज्वल गाथा लिए हुए है!

ये भूमि वीर तेजाजी महाराज की है, ये भूमि असंख्य राठौड़ो की रणभूमि रही है!.....और तो और ये बंजर भूमि इतिहास की बहुत सारी वीर गाथाओं और उदाहरणों से भरी पड़ी है जहाँ लोगों ने अपने जीवन और परिवारों को जोखिम में डाल दिया और निष्ठा, स्वतंत्रता, सच्चाई, आश्रय, सामाजिक सुधार आदि जैसे गौरव और मूल्यों को बरकरार रखा है। 
 म्हारो राजस्थान !!!

✍️©हितेश राजपुरोहित "मुडी"

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