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Saturday, May 13, 2023

जोधाणा की जुबानी।

13 मई 2023 शहर जोधाणा (जोधपुर), जेठ की तपती शाम में गर्मी से निजात पाने के लिए जैसे ही छत पर चढ़ा। यक़ीनन मैं काफी हल्का महसूस कर रहा था। इसका कारण दिनभर की गर्मी ने दिमाग और शरीर दोनों को डिप्रेशन में ला दिया था और रही कसर पढ़ाई की चिंता ने पूरी कर दी थी।

छत पर आने से पहले मेरे मन में हजारों सवाल थे, मायूसी ने मुझे घेर रखा था। मानो मैं खुद से एक युद्ध लड़ रहा हूँ और वो भी निहत्थे आख़री सिपाही के रूप में, जो मानो किसी हार के डर से समर्पण की मुद्रा में लीन होने की कोशिश कर रहा हो।

लेकिन जैसे ही मैंने अपनी कोठरी से छत की और प्रस्थान किया। मुझे अपनी कोठरी की दीवारों और किवाड़ों से एक अजीब गंध आ रही थी और यह गंध किसी प्राचीन खंडहर के जैसे लग रही थी। अपने सांस को रोककर मैं छत की तरफ भागा......!!

ऊपर पहुचने से पहले अंतिम सीढ़ी पर मेरे मस्तक को एक तेंज लू के झोंके ने चुम लिया। मुझे फिर भी अपनी कोठरी से यहाँ बेहतर अनुभव हो रहा था। छत से सुदर नज़र आता शहर जोधाणा, इस भयंकर गर्मी में भी यहाँ के बाशिंदे गर्म चाय और ए भाया! एक गर्म मिर्चीबड़ो देदो।" के टोन (धुन) में तल्लीन हैं।


मेरे कोठरी की छत से मेहरानगढ़ (जोधपुर किला) एकदम समीप और स्पष्ट दिखाई पड़ता है। इसका कारण मैं पुराने शहर में रहता हूँ। यहाँ अपना एकदम देसी मारवाड़ नज़र आता है।.....क्या करते हो? का ज़वाब "फ्री हा"  में देने वाले टेंशन फ्री लोगों के बीच गुजरता है समय।

जैसे ही मैंने मेहरानगढ़ को देखा, वो अपने प्राचीन गौरवशाली इतिहास को लिए वैसे ही खड़ा है जैसे राव जोधा छोड़कर गए थे। इसने गोराधाय और वीरदुर्गा राठौड़ जैसे स्वामीभक्त भी देखे है और मोटाराजा उदयसिंह जैसे मुगलों के आगे समर्पण करने वाले डरपोक शासक भी देखे है। इस दुर्ग ने महाराणा प्रताप के आदर्श रावचंद्रसेन का स्वाभिमान भी देखा है..... जिसने अक़बर के नागौर में संकल्प लिया कि ये रावचंद्रसेन मरते दम तक मुगलों की गुलामी स्वीकार नहीं करेगा। 
और इस दुर्ग ने उस बादशाह को भी देखा जिसके अदम्य साहस और शौर्य से प्रभावित हो शेरशाह सूरी ने कहा था कि एक मुट्ठी बाजरे के लिए मैं अपनी हिंदुस्तान की बादशाहत गवा देता। हाँ, वही मारवाड़ की शान वीर मालदेव। और इसने रूठीरानी भटियाणी (उमादे) की जिद्द भी देखी है।

ऐसे हजारों यौद्धा यहाँ से चले गए, लेकिन ये दुर्ग आज भी उनकी विरासत को लिए अड़िग खड़ा है। 

मैं जब जब-जब अपनी कोठरी में उदास या मायूस हो जाता हूँ। तो ये दुर्ग फ़िर से मुझे रण समर में शस्त्र उठाने का साहस भरता है। इसके निष्ठावान वीर सूरमा मुझे अपनी कोठरी के प्रति निष्ठा दिलाते है। इतना मोटिवेशन पूरी काफ़ी हो जाता है दिनभर के लिए.....फ़िर पुनः स्थापित सेटअप में चला जाता हूँ!! With full Josh!!! मोटिवेट होने के हजारों तरीके है, बस करना आपको ही है.....अब राजी राजी करो या फिर बेमन। तो चलो ख़ुश रहकर किया जाए!!

गुड नाईट दोस्तों!!

✍️© हितेश राजपुरोहित

जोधाणा की जुबानी।

13 मई 2023 शहर जोधाणा (जोधपुर), जेठ की तपती शाम में गर्मी से निजात पाने के लिए जैसे ही छत पर चढ़ा। यक़ीनन मैं काफी हल्का महसूस कर रहा था। इसक...