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Friday, February 3, 2023

मारवाड़ी री कहाणी !!


                        
भोपाल में आज दो महीने बाद बारिश का दौर अब जाकर थमा, मैं इतनी इतनी भंयकर बारिश से ऊब गया था। क्योंकि मैं ठहरा थार का बाशिन्दा(मारवाड़ी), इतनी ज्यादा बारिश का आदि नहीं था।

रात को होटल में खाना खाने के बाद, मैं और मेरा मित्र दोनों टहलने निकले। बारिश आज थम चुकी थी। लेकिन वातावरण में अभी भी नमी थी, आसमान सफेद रुई समान बादलों से आच्छादित था। परिवेश में आहिस्ता-आहिस्ता ठंडी हवाएं मेरे ललाट और अधरों पर आकर टकरा रही थी।, सुनसान सड़क,  मंद-मंद रोडलाइट की रोशनी और चारों तरफ मौजूद खमोशी ये बयां कर रही थी कि ये शहर थम चुका है!

जैसे ही हम चलते-चलते आगे बढ़े, रोड के साइड में एक पान का कैबिन दिखा। मेरे मित्र ने मुझसे बोला कि भाई चल पान खा लेते हैं........ भोपाल का पान वैसे भी बड़ा लज़ीज होता हैं। मैंने भी बिना किसी विलंब के अपनी पदचाल कैबिन की और अग्रसर कर दी!
जैसे ही कैबिन पर पहुँचे, मैंने पान वाले से बोला " चचा पान खिला दीजिये ना"
चचा पान बनाने में मशगूल हो गए......................
मैंने चचा से पूछा " चचा आपके यहाँ बीकाजी नमकीन होगी क्या?"

इतने में चचा ने अपनी एक भौंह ऊपर चढ़ा करके मुझसे पूछा " मारवाड़ी हो क्या?"

"जी हाँ, लेकिन आपको कैसे मालूम?" मैंने बोला

एक तो तुम्हारे हिंदी बोलने के लहजे से और दूसरा बीकाजी नमकीन से ( ये राजस्थान की विश्व प्रसिद्ध नमकीन हैं)

"अच्छा ऐसा" मैंने बोला।

दो मिनट की लंबी खामोशी के बाद चचा ने बोला "बेटा एक जमाने में मेरे भी एक बहुत बड़ी हार्डवेयर की दुकान थी।"

"तो अब ये पान का कैबिन कैसे?" मैंने पूछा।

चचा ने अपने होठों की सलवटों को तिरछा करके बनावटी हँसी में बोला "ये सब आपके किसी मारवाड़ी भाई की देन हैं।"

अरे! साला थोड़ी देर पहले अपने मित्र से, मैं बड़ा ज्ञान पैल रहा था .................मारवाड़ी होने का गर्व।
बोल रहा था कि जहाँ न पहुँचे गाड़ी, वहाँ पहुँचे मारवाड़ी!
एक ही क्षण और वाक्य ने मेरे सारे गर्व को नेस्तनाबूद कर दिया...... मैं स्तब्ध खड़ा था, पत्थर की तरह!

हिम्मत करके मैंने चचा से पूछा "आखिर हुआ क्या था चचा?"

उन्होंने फिर चौपड़ा खोल दिया मेहनतकश मारवाड़ी जात का!

बोले "बेटा मेरे दक्षिण भारत में एक हार्डवेयर की एक बड़ी दुकान थी, काफी अच्छी चल रही थी। एक दिन एक मारवाड़ी आया.............
दिखने में मारवाड़ी बड़े सीधे-साधे लगते हैं, वाणी में मिठास तो गुड़ से भी ज्यादा होती हैं और ललाट पर तिलक लगाये, भक्त आदमी.........यही मार खाते है सब.......और मैंने भी खाई!

उसको काम पर रख दिया। उसके कुछ दिन बाद वो बोला सेठ क्यों न अपने काम को थोड़ा बड़ा कर देते है यानी एक दुकान एक और खोल देते है। मैं पूरी शिद्दत और लगन से काम करूँगा।
चचा ने बोला कि मैंने भी बिना कुछ सोचे समझे काम को बढ़ा लिया। एक और दुकान खोल दी......बहुत पैसा इन्वेस्ट किया।

चचा एकदम शांत हो गए। उनके चेहरे पर बरसों पुराना ज़ख्म, आज स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था। चेहरे पर मायूसी स्पष्ट झलक रही थी!

"फिर क्या हुआ चचा?" मैंने पूछा।

फिर होना क्या था। छः महीने बाद रातोंरात बोरिया-बिस्तर बांध के फ़रार हो गया......गोड़े दे दिए हमे!

"हाथ री सफ़ाई जोरदार थी भाइया री, लागे कोई जालोरियों ईस वई" मैंने मन मे बड़बड़ाया।

इस प्रकार की घटनाएं एक मारवाड़ियों को तोड़ सकती है क्या!........एक खराब मछली के कारण पूरे तालाब को गंदा नहीं कहा जा सकता........कुछ भी हो मारवाड़ी यानी व्यापार .....ये पूरा विश्व जानता है....... कोई बिजनेस की डिग्री नहीं फिर भी व्यापार में 8 वी सदी से एकाधिकार जमाना.....ये काबिलियत है मारवाड़ी की!


गर्व से कहो हम मारवाड़ी है........हितेश मारवाड़!!!

नोट- केवल हास्य के लिए.....मारवाड़ियों का इससे कोई लेनादेना नहीं हैं..... मारवाड़ियों को ईमानदारी में किसी प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं हैं!

✍️© हितेश राजपुरोहित "मुडी"

जोधाणा की जुबानी।

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