प्यारी बहना, आज तुम्हारी विदाई को तीसरा दिन है!!
तुम्हारी विदाई के साथ-साथ, घर की रौनक भी तुम्हारे साथ चली गई!
घर के आँगन में खड़ा पेड़, आज एकदम मायूस शाखाएँ झुकाये खड़ा है......एकदम निश्चल!!
एकदम वीरान....ये कैसा दर्द है....कुस समझ नहीं आ रहा है, बस महसूस कर रहा हूं!!
जिस आँगन में तुमने गुजारा था हसीन बचपन, जहाँ तुम्हारी यादों का एक संदूक है!! आज उस आँगन को छोड़कर जा रही हो!!
कितना मुश्किल होता है एक बेटी होना!!...यादों के सहारे एक नए सिरे से अपना जीवन शुरू करना....एक दर्द, एक टीस..... निःशब्द!!!
विदाई के वक्त तुम्हारे आँसू देखकर, एक पल को मैं अंदर से फुट पड़ा था! मैंने बहुत कोशिश, लेकिन मैं अपने आँसुओं को रोक नहीं पाया! हल्क़ (गले) के नीचे एक दर्द.....जिसे समझा नहीं जा सकता, सिर्फ महसूस किया जा सकता है....असहनीय!!
प्यारी बहना तुम्हारी विदाई के वक्त तुम्हारा पिताजी के गले लगकर रोना....वाकई वो पल मेरे जिंदगी के यादों के संदूक का सबसे मुश्किल पल था!! पिताजी कितने कठोर होने के बावजूद अपने आँसुओं को नहीं रोक पाए!! वो भी मेरी तरह खुलकर आँसू बहाना चाहते थे, लेकिन इस निष्ठुर समाज में हम मर्दों के आँसू निषेध है! समाज क्या कहेगा! मर्द होकर आँसू ! उफ़्फ़ कमाल है!!!......इस निष्ठुर समाज को कोई बताओ कि वो मर्द से पहले इंसान है! जिसमें संवेदना होती है!! वो भी रोना चाहता है!!
खैर पिताजी ने तो अपने आँसुओं को रोक दिया, लेकिन मैं खुलकर आँसू बहाना चाहता था!! मैं तुम्हारी विदाई के बाद जब अपने आँसुओ को अपने गले में दबाकर घर आया.....घर एकदम वीरानसा प्रतीत हो रहा था, घर के हर एक हिस्से में नज़र आता खालीपन मुझे खाये जा रहा था!
जैसे ही मैंने माँ को देखा, मैं बेतरतीब भागता हुआ। माँ के कंधे पर अपना सिर रखकर रो पड़ा....मैंने बहने दिए अपने आँसुओं को! मैं चाहकर भी नहीं रोक पाया, अपने भीगे हुए नैनो को! उस क्षण घर के हर एक सदस्य की आँखें आँसुओं से भरी पड़ी थी!!
आज सवेरे जब मैंने तुम्हारी सिलाई मशीन की ओर देखा तो वो मुझसे पूछ रही थी कि मेरी मालकिन कब आयेगी!! मैं उसे कुछ जवाब नहीं दे पाया। उससे नजरें बचाकर मैं जैसे ही घर के बाहर आया। तो तुम्हारी स्कूटी मुँह लटकाये, एकदम मायूस खड़ी थी!
आज सवेरे जब मैं स्नान करके बाहर आया तो मुझे अपने कपड़े ठिकाने पर नहीं मिले! इतनो वर्षो से मुझे सारे कपड़े एकदम सलीके से रखे हुए मिल जाते थे, आदत हो गयी थी!! अब अपनी हर आदत को मुझे बदलना होगा!!
पिताजी को अब दूसरों के हाथ की चाय नहीं जमती!! शाम को चार बजते ही नींद से उठकर इंतज़ार करता हूं.... तुम्हारे हाथ की चाय का!!
सही मायनों में प्यारी बहना तुम घर का असल बेटा हो!! पिताजी हर काम में तुम्हारी राय जरूर लेते!! घर की सारी जिम्मेदारियों को तुम अपने कंधों पर लेकर चलती हो!
बेटा तो सिर्फ एक परिवार को संभालता है, लेकिन बेटियां दो परिवारों को संभालती है!! आज मोबाइल में पुरानी तस्वीरें देख रहा था! तुम्हारी पुरानी तस्वीरों को देखकर सोचने लगा, वक़्त कितना जल्दी बीत जाता है!! आज तुम ब्याह दी गयी हो!!!
प्यारी बहना तुम्हें याद है स्कूल के वो हसीन दिन......जब मैं रोता हुआ या फिर पेटदर्द का बहाना बनाकर तुम्हारे पास आ जाता था!! तुम सही मायनों में मेरे लिए माँ का दूसरा स्वरूप हो! माँ जब ननिहाल जाती थी तो तुम्हारी पायलों की आवाज मुझे माँ का आभास करवाती थी!!
ये (विदाई) तो संसार का नियम है, जिसे सहर्ष हमें स्वीकार करना होगा!! और मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता हूं कि आपका वैवाहिक जीवन ख़ुशी से गुज़रे! आप इसी तरह उस (ससुराल) घर को भी खुशियों से भर दो!!! भगवान सारी खुशियाँ आपके झोली में डाल दे!!
आपका हितेश!!!
✍️© हितेश राजपुरोहित "मूडी"