दोस्तों वैसे तो दुनियां में करोड़ो क़िरदार है, लेकिन कुछ किरदार ऐसे होतो है जो दिल मे बस जाते है। इन किरदार से जीवन के किसी भी पढ़ाव पर अनायास मुलाकात हो जाती है और यह मुलाकात ताउम्र ह्रदय में सुखद स्मृति के तौर पर बनी रहती है!
कालांतर में साहित्यिक विद्वानों ने किरदारों को अपनी कल्पनाशीलता के आधार पर गढ़ाना शुरू कर दिया और वर्तमान के इस दौर में रंगमंच (सिनेमा) वाले भी हर फ़िल्म के आगे लिख देते है कि फ़िल्म के सभी पात्र और क़िरदार काल्पनिक है और वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है।
दुनियां का सबसे बड़ा झूठ और कॉन्सपिरेसी थ्योरी इन्हीं लेखकों और सिनेमा वालों ने गढ़ी! क़िरदार कभी भी काल्पनिक संभव नहीं है। आप अपनी कल्पनाशीलता को भले ही शिखर तक ले जाओ, आपके द्वारा गढ़ा हर एक क़िरदार इस भूमि पर मौजूद होगा। आपके द्वारा गढ़ा हर-एक काल्पनिक क़िरदार यथार्थ में मौजूद किरदारों को मध्यनज़र रखते हुए बनाया गया है, सही मायनों में यह क़िरदार आपको यहाँ भूमि पर नज़र आ ही जायेगा!!
खैर छोड़िए ! कछु ज्यादा ही हो गया!
क़िरदार के इस आलोचना में गहरा न जाते हुए हम असल मुद्दे पर आते है!!
हर इंसान स्वभाव से घुम्मकड़ होता है। वह जीवन भर घूमता रहता है। कभी पेट की आग के लिए, तो कभी अपनो की तलाश में, तो कभी ख़ुद में ही मौजूद अपने ही क़िरदार से बतियाने दूर कहीं बहुत सुदूर एकांत में घूमने चला जाता है। इस यात्रा में उसे हजारों क़िरदार मिलते है और ये क़िरदार भी जीवन रूपी रंगमंच पर निरंतर यात्रा करते रहे है, घूमते रहते है।
"ये सभी क़िरदार जीवन रूपी यात्रा में घास-फूस रूपी जमीन पर रोल करते रहते है, रोल बनाते रहते है और रोल जलाते रहते है!" यहीं है इस संसार का वास्तविक सत्य।
उपर्युक्त पंक्तियों को युवा पीढ़ी अच्छे से समझ पाएगी क्योंकि इनके जीवन मे रोल भरे पड़े है और रोल बनाने में तो क्या ही कहने.....परफ़ेक्ट gogo!!
मैं ख़ुद बहुत बड़ा घुम्मकड़ हूँ। साल में दो यात्रा वो भी अकेले करना मेरी फ़ितरत है। इन्हीं यात्राओं में मुझे कहीं ऐसे क़िरदार मिले जिन्हें मरते दम तक याद रखूँगा! ऐसे ही एक क़िरदार से आज आपको मिलवाने वाला हूं, तो देर किस बात की मिलते है अपने शशिर पांडे से!!
शशिर पांडे इलाहाबाद के रहने वाले है और स्नातक भी इलाहाबाद विश्विद्यालय से किया है। इनके टोन और ज़बान में इलाहाबादी गौरव कूट कूट कर भरा हुआ है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी ने इस देश को नजाने कितने ही बेहतरीन लेखक, राजनेता और अभिनेता दिए है, जिनकी फेहरिस्त बहुत बड़ी है। इस कारण शशिर पांडे को अपने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पासआउट होने का गुरुर था।
कद में मझोले, हल्के गेहुआँ रंग और शुद्ध स्वदेशी खादी ग्रामोद्योग के कपड़े से निर्मित कुर्ता-पायजामा पहने पहली बार शशिर मोहदय मुझे मिले थे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्विद्यालय के बग़ल में नवाज़ भाई के पान गल्ले पर! मुँह में पान दबाए जोर जोर से देश के वामपंथियों को गरिया रहे थे। पान के सुर्ख़ थूक उनके अधरों को रंग चुके थे और गरियाते हुए बीच में हल्का सा ब्रेक लेकर एक एक-दो पीक बग़ल में रखे पीकदान में थूक देते.....पहली नज़र में इस क़िरदार ने मुझे क़ायल कर दिया !!
धीरे-धीरे शशिर मोहदय से मेरी मुलाकात होती रही और दोनों साहित्यि के शौकीन होने के कारण अच्छे मित्र बन गए। थोड़े समय बाद पता चला कि शशिर मोहदय अपने ज़माने में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के दबंग छात्रनेता रह चुके और विश्विद्यालय के चुनावों में कट्टे से फायरिंग के मामले में जेल भी जा चुके है....ये इलाहाबाद यूनिवर्सिटी और जेल जाना तो शशिर मोहदय दिन में बीसियों बार बोल देते थे।
एक दिन हमारी टोली विश्विद्यालय के कैंटीन में बैठी थी। सब मित्र एक दूसरे से बतिया रहे थे। चाय और सिगरेट के साथ देश-विदेश के मुद्दों पर गहन चिंतन हो रहा था, लेकिन इन सब के परे शशिर मोहदय फ़ोन पर लगे हुए थे।
जोर जोर से बोल रहे थे कि "मुन्ना सिंह अपने एकदम ख़ास और अज़ीज है। उनके एक इशारे पर साला हम इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में विपक्षी मधुसूदन त्रिपाठी के खेमे पर खुद पड़े थे कट्टा लेकर! पूरे यूनिवर्सिटी में धुँआ धुँआ कर दिए थे बे! आजकल मुन्ना सिंह अपने उत्तरप्रदेश में कॉंग्रेस का सारा मीडिया का काम देखते है!!"
"कट्टर हिन्दू संगठन इस देश को बर्बाद कर दिए है!"
अचानक से आई इस तेज आवाज़ ने मेरा और शशिर मोहदय का ध्यान भटका दिया। यह आवाज़ कैंटीन में मौजूद वामपंथी ख़ेमे से मुख़र्जी की थी!
इस आवाज़ को सुनते ही शिशर मोहदय ने न आव देखा न ताव सीधा फ़ोन ऱखकर दौड़ पड़े वामपंथी ख़ेमे पर प्रहार करने। हाथापाई हुई, एक दूसरे के कॉलर पकड़े गए!
जैसे तैसे करके शशिर मोहदय को हम खींचकर दूर ले आये, लेकिन इलाहाबाद के दबंग छात्रनेता ऐसे थोड़े ही रुकने वाले थे! मोहदय क्रोध से कापते हुए जोर से बोलने लगे " इस वामपंथी को समझाओ बे! इसको तनिक मालूम नहीं है की साल हम इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के दबंग छात्रनेता है!!
थोड़ा रुके और फिर बोलना शुरू किया " मधुसूदन त्रिपाठी ख़ेमे पर कट्टा चलाकर साला हम जेल गए थे, इसको बताओ रे की हमसे न भिड़े! नहीं तो साला कट्टे से यहीं ठोक देंगे और साला इलाहाबाद हाई कोर्ट में जाकर सरेंडर करेंगे, सुना बे इलाहाबाद हाई कोर्ट में सरेंडर करेंगे!!
यह सब सुनकर वामपंथियों के गले में आ गई। वामपंथी ख़ेमा थोड़े ही समय में आंखों से ओझल हो गया!!
शशिर पांडे के क़िस्से तो भरे पड़े है। कभी फ़ुर्सत से आपको सुनायेंगे ...!!
से सभी क़िरदार आपको जीवन भर याद रहते है, क़िरदार कभी भी काल्पनिक नहीं हो सकता! कल्पना का सहारा लेकर हम असल क़िरदार और यथार्थ को ठुकरा नहीं सकते!!
खैर जीवन के इस सत्य में अभी मेरा दूसरा रोल तैयार हो गया है, तो हम चले उस रोल को खत्म करने!
जय महादेव , हर हर महादेव!!
✍️©हितेश राजपुरोहित "मुड़ी"