ये है हमारे शहर के राधे भैया, दिखने में एकदम मासूम और व्यवहार के क्या ही कहने......पूरे शहर के अजीज और सब के दिलों से जुड़े ....राधे भैया रूप नगर वाले!!
राधे भैया मात्र एक काल्पनिक किरदार है, जिसको आप किसी में भी खोज़ सकते हो.....ये किरदार आप में भी हो सकता है या फिर मेरे अंदर भी हो सकता है!
तो चलिए जानते है राधे भैया की निजी जिंदगी के अफ़साने! ज़रा दिल थामके बैठिएगा........।
राधे भैया का बचपन बाकी दूसरे बच्चों की तरह ही सामान्य बीता, बस खास था उनका क्रिकेट के प्रति बेशुमार इश्क़.....जो आजतक अनवरत जारी है!
विद्यालय में थोड़े बदमाश, लेकिन सबके चहते .....सभी के साथ दोस्ती....हर किसी के साथ कनेक्शन जोड़ देते थे दिल से......साला सामने वाला शख़्स पंद्रह दिन में कलेजे के घाव दिखा दे, ऐसे थे राधे भैया!
उम्र के पहिये ने करवट बदली, राधे भैया थोड़े जवान हुए। आशिक़ी के चक्कर उनके बस की बात नहीं थी, लेकिन एनोजय पूरे करते थे जीवन के, बस दिल्लगी दूर तलक तक नहीं रखते थे अपने जीवन में!
जाने कितनी ही कन्याओं के चहते थे राधे भैया......पूरे कलाकार आदमी थे। कविताओं के शौकीनों के साथ मिर्ज़ा ग़ालिब बन जाते थे, तो डांसर के साथ जैक्सन और पढ़ाकू बिरदारी के साथ एकदम अलग ही रौब....शहर के बच्चों से लगाकर बड़ो तक, सब सम्मना करते थे राधे भैया का।
अब राधे भैया ट्रैक से भटक गए है, लेकिन आज भी छवि और सिद्धान्त नहीं बदले अपने जीवन के, लोगों के लिए राधे भैया आज भी वैसे ही है, लेकिन खुद राधे भैया अपने नज़रों में गिर चुके है!
कल ही उनको अपने साथ शिवशंकर होटल के ऊपर सिगरेट पिलाने ले गया। मैं जैसे ही काउंटर पर सिगरेट मांगने लगा, वैसे ही दुकानदार ने दूर खड़े राधे भैया की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि ये तो वही राधे है ना.......जिसने लगातार आठ बार राज्य स्तरीय विज्ञान मेले में प्रथम स्थान हासिल किया था......बहुत ही होशियार है, वैसे करता क्या है इन दिनों.......!!
दुकानदार के ऐसा बोलते ही मैं एक गहरी सोच में मशगूल हो गया, ये राधे भैया भी कमाल है.....खुद अपने नजरों में बर्बाद हो चुके है, लेकिन पूरे शहर को कितना गर्व है इन पर!
ओ साहब कहां खो गए (दुकानदार सिगरेट देते हुए बोला)
मैंने अपने अवचेतन दिमाग को आराम देते हुए बोला, आजकल नेशनल ड्रामा स्कूल पुणे से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे है।
इतना कहते ही मैं वहां से सीधे राधे भैया के पास चला आया।
आप भी सोच रहे होंगे कि ई साला राधे ऐसा क्या कांड कर दिया की अपने नजरों में गिर गए!
राधे भैया होली वाले दिन भांग के नशे में हमको सब बता दिए थे....चलो आप भी सुन लो राधे भैया का ट्रैक से भटकना!
बात स्कूल ज़माने की है, क्लास की सबसे होशियार और सीधी छोरी उनको पसंद करती थी, लेकिन ये बात साला राधे कभी समझ नहीं पाया.......जो सबके तरह उसे भी अपना दोस्त मानता था। राधे ने स्कूल छोड़ दी और किसी गुरुकल में एडमिशन ले लिया, लेकिन स्कूल के सारे बंदों और बंदियों के संपर्क में बना रहा,सिर्फ उस लड़की को छोड़ के!
फ़िर कॉलेज टाइम में हुआ यूँ की सभी जवान लौंडो की तरह राधे भैया भी गर्ल्स कॉलेज के चक्कर काटने लगे। एक दिन वही क्लास की सबसे होशियार बंदी मिली राधे भैया को..... नॉर्मल बातचीत हुई, हालचाल जाने एक दूसरे के!
जाते वक्त उस लड़की ने राधे के नंबर मांग लिए और बोला कि मैंने रवीना से तेरे नंबर कितनी ही बार मांगे, लेकिन उसने नहीं दिए..........ये रवीना ही एकमात्र शख़्स थी जो ये जानती थी कि वो ( होशियार लकड़ी) राधे को पसंद करती थी। पर कहानी में थोड़ा ट्वीस्ट था, रवीना भी राधे भैया पर लट्टू थी..... अपने राधे भैया थे ही ऐसे!
धीरे धीरे फ़ोन पर बात बाते शुरू हुई, लेकिन राधे उसके प्यार को पकड़ नहीं पाए, बस दिल के मामलों में थोड़ा कमज़ोर थे राधे भैया.......जैसे तैसे हिम्मत कर लड़की ने अपने बोल दिया अपने दिल का हाल राधे भैया को!
राधे का क्या.....उसके लिए प्यार और इश्क़ दोनों किस कबूतरों के नाम है?
राधे दिलों के मायने नहीं समझ पाया, उसके लिए सिर्फ जिस्म मायने रखता था! उसने उस लड़की के साथ बहुत घटिया सलूक किया!
मुझे आज भी याद है होली का वो दिन.......राधे भांग के नशे में अपने भीगें नैनो से बोल रहा था कि सुन हितेश........राधे ने अपने लाइफ में एक ही गलत काम यानी पाप किया है, वो है उस लड़की की लाइफ से खेलना!
साला वो मुझे सच्चे दिल से प्यार करती थी और मैं कम्बख़्त उसके जिस्म का उपभोग करता चला गया.....वो मेरी ख़ुशी के लिए हॉस्टल से भाग कर मनाली चली आई........हिचकिचाते हुई भीगी आँखों से बोले.......हितेश! मैंने एक परफ़ेक्ट लाइफ पार्टनर को खो दिया, मुझे मालूम था कि उसकी जैसी मुझे इस जन्म में नहीं मिलने वाली.....फिर भी मैं साला उसके जिस्म और जज्बात के साथ खेलता रहा!
धिक्कार है! मेरे जीवन पर, थू है मेरे ऊपर!.........तुम मानो न मानो, लेकिन मैं उन्हीं पापों की सजा काट रहा हूँ, और ताउम्र काटूँगा.........मैंने एक नेकदिल इंसान का जीवन बर्बाद किया है।
आँखों से आँसुओं की झड़ी लगी हुई थी.....राधे भैया थोड़े रुके और फिर बोलना शुरू हुए!!
लास्ट तीन साल पहले मिल था, सबकुछ खत्म होने के बाद फिर भी .....उसने हँसते हुए बोला था कि शायद मैं ही गलत थी........तुम सही थे यार....तुम भी राधे छोड़ो उस बात को.....बताओ नई दोस्त बनाई की नहीं!!
उसी दिन से राधे अपने नज़रों में गिर गया और नशे में अपने सपनों को अपनी आँखों के सामने रोज़ मरते हुए देख रहा है, पिछले सात साल से!!
आप सभी से निवेदन है कि राधे जरूर बने, लेकिन राधे के जीवन से सीख लेते हुए......किसी नेकदिल इंसान के जिस्म और जज्बातों से मत खेलना!!
✍️©हितेश राजपुरोहित "मुडी"