माँ का दूसरा रूप प्यारी बहिना
शायद पिछले जन्मों में, मेरे कर्म काफी अच्छे रहें होंगे। तभी तो इस जन्म में तीन बहिनों का भाई हूँ!
इस वर्ष 15 अगस्त पर यानी श्रावण पूर्णिमा के दिन, भाई-बहिन का सबसे बड़ा त्योहार रक्षाबंधन आने वाला हैं।
हर वर्ष, इस दिन मेरी कलाई पर तीन राखियां बांधी जाती हैं, परन्तु इस वर्ष मैं घर से बहेद दूर हूँ।
मन उदास है कि इस बार कलाई खाली ही रहेंगी............!
बचपन मे गुड्डे-गुड़ियों के खेल के झगड़ो से लगाकर, भूतों के डर से मेरी हिफ़ाजत रखती थी........प्यारी बहिना!
स्कूल में मास्टरजी की डांट पर सीधे रोते हुए चला जाता था उसके पास, उसकी मौजूदगी ही मेरे लिए ऊर्जा का स्त्रोत बन जाती थी!
दीपावली की छुटियों में होमवर्क पूरा नहीं करना और अंतिम दिन पर जोर-जोर से रोना और बोलना की कल स्कूल नहीं जाऊँगा.....मैडम मारेगी.....बहिन द्वारा मेरा भी होमवर्क करना ....वो भी पापा के नजरों से बचकर....... मैं नहीं भूल सकता प्यारी बहिना!
माँ जब भी ननिहाल जाती थी। तो बहिना के पायल की आवाज, मुझे माँ के घर पर होने का एहसास करवाती थी.....!
माँ के घर नहीं होने पर, माँ का रूप धारण कर लेती है....बहिना।
सुबह जल्दी उठकर झाड़ू लगाना, मटके में पानी भरना, कपड़े धोना, मेरा और खुद का टिफ़िन बनाना......... आसान नहीं होता है माँ दूसरा स्वरूप बनना......प्यारी बहिना!
थोड़ी बड़ी होते ही घर में माँ की जगह ले लेती है ,बहिना।
खुद के खाने की प्लेट से निवाला रख देती है, मेरे लिए बहिना!
इसीलिए ही तो माँ का दूसरा स्वरूप होती है ......बहिना।
जिम्मेदारियां घर की सारी, स्वयं उठा लेती है खुद सहकर सारी परेशानियां, हमारे होठों पर मुस्कान लाती हैं..... प्यारी बहिना।
इससे ज्यादा हिम्मत नहीं होगी, लिखने की.......भीग जाएगा कागज आँसुओ से........!
✍️©हितेश राजपुरोहित "मुडी"